“ पूँछने की कला “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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बेतुकी ढंग से जब हम किसी से कुछ पूछते हैं ,तो जवाब देने वाला अचंभित और स्तब्ध हो जाता है ! चाहे वो श्रेष्ठ ,समतुल्य या कनिष्ठ ही क्यों ना हो ! हम अपने परिवार में बुजुर्गों से जब कभी कुछ पूछते हैं तो विनम्रता और शिष्टाचार के बिना यह अधूरा और अनमना लगने लगता है ! विनम्रता से पूछे गए सवालों का जवाब शीघ्र और विस्तार पूर्वक मिलता है ! राह चलते हम किसी से किसी का पता पूछते हैं तो कहते हैं ,
”भाई साहेब ! जरा एक मिनट ! क्या आप इसी मुहल्ले के हैं ?”
जवाब मिलता है , “ जी हाँ ! कहिए क्या बात है !”
फिर हम पूछते हैं , “ क्या आप बता सकते हैं कि इस मुहल्ले में “ हिन्द क्लब” कहाँ है ?”
उनके जवाब से संतुष्ट होकर उन्हें “ धन्यवाद ,शुक्रिया और Thank you भाई साहेब “कहते हैं !
यह शिक्षा का गुरुमंत्र हमें बचपन से ही मिलने लगता है ! और जैसे -जैसे हम समाज में घुलते -मिलते रहते हैं इसकी शिक्षा और भी परिष्कृत होने लगती है !
क्लास में प्रवेश के लिए क्लास शिक्षक से पूछते हैं , “ Sir ,May I come in ?”
हरेक पग -पग पर विनम्रता और शिष्टाचार से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर यथोचित मिल पाते हैं और हम थोड़े से विचलित हो गए तो अपर्याप्त सूचना ही मिल पाएगी ! हरेक शास्त्र उपनिषद में ही नहीं हरेक किताबों में इसका उल्लेख है ! महान पंडित लंका नरेश जब पुरषोतम राम के बाण के प्रहार से अंतिम साँस ले रहे थे तब राम ने लक्ष्मण अनुज को कहा ,
“ अनुज लक्ष्मण ! जाओ महान पंडित रावण से शिक्षा ले लो !”
लक्ष्मण रावण के सर के पास पहुँच रावण से पूछा ! पर लक्ष्मण को खाली हाथ लौटना पड़ा ! राम के कहने पर लक्ष्मण पुनः रावण के पाँव के समीप बैठकर रावण से शिक्षा प्राप्त की ! रामायण के हरेक संवाद और सम्बोधन को ध्यान से सुने तो विनम्रता और शिष्टाचार की गूँज सुनाई देगी !
भाषा कोई भी हो हरेक भाषाओं में ये विधायें अतीत काल से ही व्याप्त हैं ! लोग इसकी अनदेखी कर देते हैं ! अधिकांशतः यह रोग फेसबुक के रंगमंच को अधिक संक्रमित कर दिया है ! थाली ,कटोरा ,घंटी ,डमरू और ताली बजाने से जब कोरोना नहीं भाग सका तो इस रोग को हम कैसे भगा सकते हैं ? अब देखिए आज कुछ दिन ही हुए ! फेसबुक मित्र बने ! न कभी गुफ्तगू न कभी कोई बातें ! झट से अपने कमेन्ट बॉक्स में लिख कर पूछा ,
”Is it available there in every place ……………..? ”
हम चौंक गए ! क्या वे हमें कुछ सम्बोधन नहीं कर सकते थे ? हमें कुछ अच्छा नहीं लगा ! हम स्तब्ध और मौन रह गए ! पुनः एक और कमेन्ट आया , “ You did not reply ? हो सकता है कि वे इसको उचित सोचें पर जो कमी हमें दिखी उसको कहे बिना हम रह नहीं सकते !
आज कल सोशल मीडिया में सकारात्मक भंगिमा को स्वीकारते नहीं हैं ! जो बात किसी को खलती है वे कहते नहीं हैं और कहते हैं तो लोग समझते नहीं हैं ! बस इन बातों को सकारात्मक सोच के साथ अपना लें तो हम सबके दिलों में बस जाएंगे !
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
एस .पी .कॉलेज रोड
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड
भारत
15.09.2021.