पुस्तक
#विधा — मन मनोरम छंद
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पुस्तक महिमा
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याद दिलाते ये पन्ने,
बचपन के वो पल नन्हें।
कर्मन बोध जहाँ पाया,
जीवन जीना तब आया।।
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पुस्तक ही तो है ज्ञानी,
पुस्तक नहीं तो अज्ञानी।
जीवन इस से जाना है,
सत्य कर्म पहचाना है।।
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सबकुछ ही तो मिलता है,
हृदय पुष्प भी खिलता है।
पुस्तक विवेक सागर है,
बुद्धि भरा यह गागर है।।
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जीवन अजब पहेली है,
ज्ञान इसकी सहेली है।
ज्ञानहीनता भारी है,
अज्ञानता दुस्वारी है।।
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पुस्तक तमस विनाशक है,
यह अज्ञानता नाशक है।
पुस्तक की महिमा न्यारी,
हम सब इसके आभारी।।
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पुस्तक जग संचालक है,
धर्म – कर्म का पालक है।
पुस्तक से ही मान मिला,
“#सचिन” कहे सम्मान मिला।।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”