पुस्तक समीक्षा
(पुस्तक समीक्षा)
समीक्षक — रामधारी खटकड़
पुस्तक — धतूरे के फूल
लेखक — अशोक कुमार ढोरिया
पुस्तक का शीर्षक पढ़कर चौंक सा गया-“धतूरे के फूल” ! एक कवि सम्मेलन में पुस्तक के विमोचन पर यह लघु कथा संग्रह प्राप्त हुआ। घर जाकर पढ़ने लगा तो पढ़ता ही गया। सोचा धतूरे जैसे नशीले पौधे के फूल कैसे होंगे।
ज्यों-ज्यों आगे पढ़ता गया तो बात कुछ पल्ले पड़ने लगी। साहित्यकार अशोक कुमार ढोरिया की कलम मुझे आगे भी पढ़ने पर मजबूर कर रही थी। छोटी-छोटी बातों में बड़े-बड़े मतलब निकलते चले गए।
कहीं कर्तव्य से विमुख सरकारी तंत्र का “जमीर मर गया” ; कहीं एक पौधा लगाकर शिर्फ फोटो खिंचवाने वाले नेता का जमीर मर गया।
महंगाई की टीस “रईस टमाटर” में, नकली समाज सेवा का पर्दाफाश “दान के पंखे” में; तो ” लचीला संविधान” में आजाद भारत की हकीकत इस लेखक बयान की है।
नोट बंदी की हकीकत; स्वच्छता अभियान का ड्रामा; ब्लेम में किसानों का दर्द, आदत में मुफ्तखोरी पर कटाक्ष, लाटरी में ब्याजखोरी पर कटाक्ष तो मेहनत का रंग में नकलखोरी पर कटाक्ष किया गया है।
पुस्तक में कहीं करोना महामारी पर सवाल, कहीं राजनीति की गिरावट पर सवाल, कहीं बढ़ती नशाखोरी पर चिंता तो कहीं मंदिर से ज्यादा हस्पतालों की जरूरत पर जोर दिया गया है। कभी त्योहारों पर तो कभी चुनावी जीत के बाद कानफोडू पटाखों से हवा में घुलता जहर ; तो कहीं मनरेगा जैसी योजनाओं का दुरुपयोग लेखक को परेशान कर रहा है।
पुस्तक की 101 लघुकथाओं में लेखक ने समाज के अच्छे-बुरे सभी चित्र प्रस्तुत किए हैं। कहीं गहरी पीड़ा; कहीं वेदना; कहीं प्रेरणा; कहीं आक्रोश; कहीं करारे कटाक्ष तो कहीं उल्लास के भाव पाठक को विभोर करते हैं। अवश्य ही यह पुस्तक सामाजिक चेतना एवं मानवीय सरोकारों को समृद्ध करने का कार्य करेगी।
लेखक अशोक कुमार जी को हार्दिक शुभकामनाएँ!