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20 Apr 2024 · 5 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक का नाम: रियासत रामपुर के हिंदू कवि एवं शायर
लेखिका: डॉक्टर प्रीति अग्रवाल संस्कृत कैटलॉगर, रामपुर रजा लाइब्रेरी एवं म्यूजियम, रामपुर
प्रकाशक: आस्था प्रकाशन गृह 89 न्यू राजा गार्डन, मिठ्ठापुर रोड, जालंधर (पंजाब)
प्रकाशन वर्ष: 2024
संस्करण: प्रथम
मूल्य: 255 रुपए
पृष्ठ संख्या: 111
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समीक्षा/ प्रस्तावना: रवि प्रकाश बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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‘रियासत रामपुर के हिंदू कवि एवं शायर’ अद्वितीय पुस्तक है। कठोर परिश्रम से लिखी गई है। लेखिका के गहन शोध का परिणाम है। जितनी अच्छी पुस्तक लिखी गई है, उतना ही सुंदर प्रकाशन भी हुआ है। आवरण पृष्ठ आकर्षित करता है। किले के मुख्य द्वार का चित्र पृष्ठभूमि में रामपुर की रियासत कालीन छवि को द्विगुणित कर रहा है। छपाई साफ-सुथरी और प्रूफ निर्दोष है।
आवरण पृष्ठ के भीतरी हिस्से में डॉक्टर प्रीति अग्रवाल की विभिन्न साहित्य गतिविधियों के महत्वपूर्ण सोपान रंगीन चित्रों के रूप में पुस्तक की शोभा बढ़ा रहे हैं।
पुस्तक पर मेरी समीक्षा ‘प्रस्तावना’ के रूप में अंकित है। ‘प्रस्तावना’ इस प्रकार है:-
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प्रस्तावना
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रियासत रामपुर के हिंदू कवि एवं शायर” शीर्षक से पुस्तक लिखना कोई हँसी खेल नहीं हैं। इसके लिए इतिहास में भ्रमण करने की आवश्यकता पड़ती है और अनेक बार अपने आप को भूलकर इतिहास के एक पात्र के रुप में परिस्थितियों को प्रस्तुत करने की चुनौती से जूझना होता है । आज़ादी के अमृत महोत्सव के समय यह कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण और आवश्यक तो है लेकिन जितना लंबा समय रियासतों के विलीनीकरण अथवा यों कहिए कि देश की स्वाधीनता को बीत चुका है, उसे देखते हुए इस प्रकार की खोजबीन को अमली जामा पहनाना कोई छोटा-मोटा काम नहीं है।

डॉक्टर प्रीति अग्रवाल ने अपनी जुझारू खोज वृत्ति के कारण इस कार्य को अपने हाथ में लिया। रामपुर रज़ा लाइब्रेरी एवं संग्रहालय का पुस्तकीय परिदृश्य उन्हें सहायक के रुप में उपलब्ध हुआ और पूर्ण मनोयोग से वह इस कार्य में जुट गईं। जिसका परिणाम आज हम पचपन हिंदू कवियों और शायरों के रूप में देख पा रहे हैं।

रामपुर नवाबों द्वारा शासित एक मुस्लिम रियासत रही है। ऐसे में इस बात की खोज भी विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है कि यहाँ हिंदू लेखकों और कवियों को कितना महत्त्व मिला ? सौभाग्य से रामपुर के सातवें शासक नवाब कल्बे अली खान के शासनकाल में प्रकाशित पुस्तक “इंतखाबे यादगार” की एक प्रति रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में सुरक्षित है। इसका संपादन सुप्रसिद्ध शायर अमीर मीनाई द्वारा किया गया है। इसका प्रकाशन वर्ष 1873 ईसवी है। नवाब कल्बे अली खान की उदार चेतना के कारण जो बहुत से अच्छे काम रामपुर में हुए, उनमें से एक “इंतखाबे यादगार” पुस्तक भी है। पुस्तक फारसी का पुट लिए हुए उर्दू में लिखी गई है। डॉ प्रीति अग्रवाल ने “इंतखाबे यादगार” का अध्ययन करते हुए यह पाया कि “कवियों की हिंदी कवितायें भी पुस्तक में उर्दू लिपि में दी गई है।” उन्होंने यह भी नोट किया कि “अधिकतर कवि हिंदी के साथ-साथ उर्दू एवं फारसी भाषा के भी अच्छे शायर थे। इसीलिए उनके उपनामों पर उर्दू की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। “डॉक्टर प्रीति अग्रवाल एक सुस्पष्ट सत्य भाषण में विश्वास करती हैं। इसलिए उन्होंने “इंतखाबे यादगार” को अपनी पुस्तक में पृष्ठ संख्या देते हुए उद्धृत किया है अर्थात कुछ भी छिपाया नहीं है। उनका कहना है कि पुस्तक “इंतखाबे यादगार” कठिन उर्दू भाषा में है तथा हिन्दू शायरों की उर्दू के साथ-साथ फारसी भाषा में भी बहुत सारी ग़ज़लें हैं जिनकी लिपि पढ़ने के साथ-साथ हिन्दी अनुवाद भी करना पड़ा जिसके लिए मैंने अपने साथी डॉ. मोहम्मद इरशाद नदवी जी से सहायता ली।” इस प्रकार शोध कार्य में मूल स्रोत को खुलकर उद्घाटित कर देना, यह किसी भी शोधकर्ता की साफगोई का एक अद्वितीय उदाहरण है।

पुस्तक के कुल पचपन कवियों में से अट्ठाईस कवि इंतखाबे यादगार से लिए गए हैं। यह कार्य डॉ० प्रीति अग्रवाल के लिए कितना कठिन रहा होगा, हम इसकी केवल कल्पना ही कर सकते हैं। लेखिका ने ” इंतखाबे यादगार” पर ही अपने शोध कार्य को सीमित नहीं किया। उन्होंने अन्य लेखकों की जितनी पुस्तकों से जो जानकारियों मिल सकती हैं, उन्हें भी एकत्र किया। रामपुर के वयोवृद्ध विद्धानों से भी जानकारी प्राप्त की तथा किसी भी रियासत काल के कवियों के संबंध में जितनी अधिक से अधिक जानकारी पाठकों तक पहुँचाई जा सकती थी, उसे उन्होंने पहुँचाया। इस दृष्टि से पंडित दत्तराम, बलदेब दास चौबे तथा महाकवि ग्वाल का परिचय प्रस्तुत करने में लेखिका ने जितना परिश्रम किया है, उसकी सराहना करना अत्यंत आवश्यक है ।

लेखिका ने “इंतखाबे यादगार” के बाद के कवियों के बारे में जानकारी जुटाकर यथासंभव उनकी जन्म और मृत्यु की तिथि अंकित करने का प्रयास किया। उनके योगदान का समुचित मूल्यांकन करते हुए पाठकों तक उनका प्रदेय पहुंचाया है। इन पचपन कवियों में से अधिकांश इतिहास के विस्मृत व्यक्तित्व हैं। इनकी काव्य क्षमताओं से सर्वसाधारण तो क्या काव्य जगत के धुरंधर कहे जाने वाले व्यक्ति भी अपरिचित ही होंगे। किसी की दो- चार कविताएँ और किसी की अधिक काव्य सामग्री अपनी पुस्तक के माध्यम से पाठकों तक पहुंचा कर लेखिका ने रामपुर में रियासत के दौरान हिन्दुओं की साहित्यिक स्थिति की मजबूती का चित्रण तो किया ही है, साथ ही यह भी बताया है कि नवाब कल्बे अली खान के शासनकाल में उदारतापूर्वक शिवालय का निर्माण सोने की ईंट से शिलान्यास करके पंडित दत्तराम के आग्रह पर किया गया था। यह प्रवृतियाँ 1873 ईसवी के आसपास रामपुर रियासत में शासक वर्ग की धर्मनिरपेक्ष जीवन शैली का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं। इससे शासक वर्ग की हिंदुओं के प्रति उदार दृष्टि प्रमाणित हो रही है। पुस्तक रामपुर के रियासती इतिहास पर एक सकारात्मक खोज है। इससे सर्व धर्म समभाव की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा।

स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रारम्भिक दशकों में रामपुर के हिन्दी कवियों का हिंदी साहित्य के प्रति योगदान का विवरण एवं मूल्यांकन भी कम श्रमसाध्य कार्य नहीं है। इसके लिये गहरी रुचि के साथ-साथ विभिन्न स्रोतों से सामग्री एकत्र करना, उस पर चिन्तन-मनन करते हुए सारगर्भित रूप से प्रस्तुत करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती होता है। डा० प्रीति अग्रवाल ने इस दृष्टि से कवियों की नवीनतम जानकारी तथा उनका प्रदेय जिस कौशल के साथ पुस्तक में प्रस्तुत किया है वह सराहनीय है। डॉ० प्रीति अग्रवाल को उनके श्रमसाध्य शोध के लिए हृदय से बधाई।

– रवि प्रकाश
(कवि और लेखक) बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश मोबाइल- 9997615451

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