*पुस्तक समीक्षा*
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम: महकती हुई रात होगी (गजल संग्रह)
कवि: वसंत जमशेदपुरी
पता: सीमा वस्त्रालय, राजा मार्केट, मानगो बाजार, जमशेदपुर, पूर्वी सिंहभूम, झारखंड 831012
मोबाइल 9334 805484 तथा 79799 09 620
प्रकाशक: श्वेत वर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य ₹200
प्रथम संस्करण 2023
समीक्षक: रवि प्रकाश बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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किसी न किसी रूप में तुक से तुक मिलकर कविता रच लेना एक सामान्य-सी बात है, लेकिन गजल के प्रवाह में शब्दों को बॉंध लेना एक ऐसी अनूठी कला है जो कम ही लोगों को आती है। विचारों की गहराई में जाकर पाठकों को कुछ ऐसा प्रदान कर देना जो उनकी सोच को विस्तृत और विराट बनाने में सहायक हो, उनकी अंतस चेतना को जागृत करे तथा उनमें संवेदन के मूल्यों को भर दे, यह कठिन कार्य होता है। वसंत जमशेदपुरी जी के प्रथम हिंदी गजल संग्रह महकती हुई रात होगी की एक सौ गजलों से इस बात की पुष्टि हो रही है कि गजलकार सामाजिक चेतना का वाहक है। वह कुछ सुस्पष्ट विचारों के साथ कलम को धारण करता है और सुस्पष्ट शैली में अपनी बात पाठकों तक रखना है।
अपनी संस्कृति और आध्यात्मिकता के साथ जुड़कर कवि ने गजल के एक शेर में सरस्वती वंदना का हृदय-स्पर्शी भाव प्रस्तुत किया है। कवि लिखते हैं:
मैं माता शारदा का भक्त उनसे और चाहूं क्या/ बसो मॉं लेखनी में कामना प्रति याम करता हूं (गजल संख्या 71)
अपनी मिट्टी से जुड़े हुए इसी भाव को वैराग्य मूलक दृष्टि प्रदान करते हुए कवि की निम्न पंक्तियां ध्यान देने योग्य हैं :-
सामने बैठी हो बिल्ली तो कबूतर क्या करे/ छत पे हैं बिखरे हुए जो चार दाने की कहो (गजल संख्या 62)
यहॉं जो बिंब विधान यमराज के रूप में बिल्ली का और नश्वर शरीर की सांसों के रूप में कबूतर का प्रस्तुत किया गया है तथा साथ ही छत पर चार दाने बिखरे हुए मनुष्य की लालसा, लोभ और मोह को दर्शाते हैं, वह अद्वितीय है।
व्यंग्यात्मकता कवि का मूल स्वभाव है । उसने एक गजल के शेर में क्या खूब लिखा है:-
अदब के तख्त पर बोलो भला क्यों/ तिजोरीमल बिठाया जा रहा है (गजल संख्या 28)
यहां तिजोरीमल का जो नितांत नूतन शब्द प्रयोग किया गया है, वह गजलकार की भाषागत क्षमताओं को बखूबी प्रकट कर रहा है।
एक अन्य स्थान पर कितने मजेदार ढंग से इस संसार में जो उलट-फेर चल रहा है, उसका वर्णन कवि ने किया है:-
खा रहे हैं अब जलेबी होटलों में कुछ गधे/ क्या गलत है घास जब चरने लगा है आदमी गजल संख्या 6
प्रकृति का चित्र भला कौन कवि होगा, जो अपने काव्य में प्रस्तुत न करें। वसंत जमशेदपुरी का गजल संग्रह भी इससे अछूता नहीं है। प्रकृति में चिड़ियों आदि की चहचहाहट जब गजलकार को कम होती दिखाई दी तो उसने लोक मानस की भावनाओं को निम्नलिखित सशक्त शब्दों में अभिव्यक्ति दे डाली:-
नहीं दिखती है गौरैया नहीं दिखता कहीं पीपल/ मचाते शोर जो आते कबूतर याद आते हैं (गजल संख्या 49)
इसी गजल संख्या 49 में मनुष्यतावादी दृष्टिकोण भी खूब मुखरित हुआ है। गजलकार उनका प्रतिनिधि है, जो सर्वसाधन-विहीन हैं ।वह उनके प्रति समाज में करुणा को जागृत करना चाहता है। इसलिए लिखता है:-
रजाई में भी जब सर्दी कॅंपाती जिस्म है मेरा/ खुली सड़कों पे सोते जो वो अक्सर याद आते हैं (गजल संख्या 49)
समाज में ऐसे लोग बहुत हुए हैं जिन्होंने तलवार के बल पर दुनिया को जीतने की कोशिश की है, लेकिन कवि तो प्यार से दुनिया को जीतना चाहता है। इसलिए लिखता है:-
जीत लो दुनिया को अपने प्यार से/ व्यर्थ कोशिश मत करो तलवार से (गजल संख्या चार)
एक स्थान पर अहिंसा का समर्थन तथा स्वाद और भोजन के नाम पर पशु-हिंसा का विरोध कवि की लेखनी से मुखरित हुआ है। आप भी इस सामाजिक सुधारवादी दृष्टिकोण के महत्व को समझने का प्रयत्न कीजिए। शेर इस प्रकार है:-
मीठे फल खाओ उपवन के, पी लो जल झरने वाला/ हिंसा से जो हासिल होता ऐसा खाना बंद करो (गजल संख्या 14)
कहने की आवश्यकता नहीं है कि उपरोक्त शेर एक नारे की तरह अगर मनुष्यता के बीच गूॅंजे, तो लेखनी सार्थक हो जाती है।
मात्र 16 मात्राओं में अपनी बात रखने की कला के साथ एक छोटी-सी लेकिन महत्वपूर्ण गजल देखिए:-
कैसे वह डिग पाए बोलो/ जो अंगद के पॉंव सरीखा (गजल संख्या 82)
कम शब्दों में रामायण के पात्र के माध्यम से अधिक मनोबल को जिस प्रकार गजलकार ने दर्शाया है, वह सराहना के योग्य है।
संग्रह में नीति विषयक गजलों की भरमार है। ऐसे अनेक शेर हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी में हमें सीख देते हैं, सचेत करते हैं और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ऐसे कुछ शेर देखिए:-
मैंने दुश्मन बसाए ऑंगन में/ खाट अपनी ही खुद खड़ी कर ली (गजल संख्या 41)
सही नाविक के हाथों में अगर पतवार होती है/ तो तूफॉं कितने भी आऍं ये नैया पार होती है (गजल संख्या 57)
मूर्खों की हो भीड़ वहां बस/ चुप से हितकर और नहीं कुछ (गजल संख्या 100)
कहने का तात्पर्य यह है कि वसंत जमशेदपुरी के पास एक साफ-सुथरी दृष्टि है, जो काव्य रचना इसलिए कर रही है क्योंकि उसे कुछ संदेश संसार को देना है। केवल लिखने के लिए अथवा केवल मनोरंजन के लिए कविता करते रहने का कोई खास प्रयोजन भी नहीं रहता।
पुस्तक में प्रयुक्त अरबी-फारसी के शब्द अगर हिंदी अर्थ के साथ दे दिए जाते, तो हिंदी पाठकों के लिए प्रस्तुत गजल संग्रह की उपयोगिता अधिक बढ़ जाती। भाषा तो केवल विचारों का माध्यम मात्र होती है। शब्द चाहे उर्दू के हों अथवा हिंदी के, उनका अभिप्राय एक ही रहता है। यह गजल संग्रह हिंदी और उर्दू दोनों प्रकार के पाठकों के लिए पर्याप्त चेतना से भरी हुई सामग्री सॅंजोए हुए है। आशा है पुस्तक का सर्वत्र स्वागत होगा।