Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Feb 2023 · 4 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
_________________________
पुस्तक का नाम : अभिनव-मधुशाला
रचयिता : शिव अवतार रस्तोगी (एम.ए.द्वय व हिंदी प्रवक्ता)
प्रकाशक : मधुर प्रकाशन, आर्य समाज मंदिर, 2804 -बाजार सीताराम, दिल्ली 110006
प्रथम संस्करण : 1986
मूल्य : 75 पैसे ₹60 सैकड़ा
—————————————
समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
———————————–
मधुशाला के जवाब में अभिनव-मधुशाला : बधाई
———————————–
“अभिनव-मधुशाला” गजब की रचना है । हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला के जवाब में शिव अवतार रस्तोगी सरस ने यह अभिनव-मधुशाला लिखी है। इसका उद्देश्य शराब की बुराइयों को समाज के सामने लाना है और लोगों को शराब से बचाना है।
इसमें संदेह नहीं कि बच्चन जी की मधुशाला छंदबद्ध, गेयता की दृष्टि से सुंदर, लयात्मकता से युक्त और स्वयं बच्चन जी खनकती हुई और कुछ वक्रता लिए हुए आवाज में अपना अद्भुत जादू करती थी । यह बहुत लोकप्रिय हुई । कवि सम्मेलनों में छा गई । लेकिन समाज को नैतिक मूल्यों के साथ जोड़ने के इच्छुक महानुभावों ने मधुशाला के दुष्प्रभाव को महसूस किया और उनके हृदय में “मधुशाला” को लेकर एक टीस पैदा होती रही। ज्यादातर लोगों ने ‘मधुशाला’ पर प्रश्नचिन्ह लगा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली, लेकिन मुरादाबाद निवासी शिव अवतार रस्तोगी सरस ने अपने कवि-रूप को धारदार आयाम दिया और बासठ चतुष्पदियॉं लिखकर मधुशाला के औचित्य पर एक वास्तविक प्रश्न चिन्ह लगाने में सफलता प्राप्त की।
अभिनव-मधुशाला का हर छंद समाज को शराब से बचाने वाला है। शराब के दुर्गुणों पर यह व्यक्ति को सचेत करता है। घर-परिवार हो, धार्मिक त्यौहार हो अथवा धार्मिक स्थल ही क्यों न हो, सब जगह कवि ने शराब के दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला है । स्थान-स्थान पर ऐतिहासिक विवरण भी कवि ने एकत्र किए हैं, जिसमें उच्च आसन पर बैठे हुए शासनाधीशों की मदिरापान की प्रवृत्ति को इंगित किया गया है । यह पौराणिक काल से लेकर आधुनिक समय तक के प्रसंग हैं। किस तरह घर-परिवार खून के ऑंसू रोते हैं, यह भी शराब-प्रेमी परिवारों की अंतर्कथा अभिनव-मधुशाला में चित्रित है ।
चुनावों में शराब का जोर रहता है । हर दफ्तर में शराब चलती है। बरातों में शराब का खूब प्रचलन है । यह सब विभिन्न छंदों में कवि ने दर्शाया है । चाहे विद्यालय हों, या छात्र अथवा कवि ही क्यों न हों, सब में शराब की बुराई आ गई है। कवि ने इन सब के बारे में खूब लिखा है । फिल्मों में, ट्रक चालकों में -तात्पर्य यह कि शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा बचा होगा जिस पर कवि ने शराब के दुर्गुणों के दुष्प्रभाव पर लेखनी न चलाई हो। उसने स्वास्थ्य को मटियामेट करने वाली इस बुराई के खिलाफ जितना लिखा जा सकता है, लिखा है । निश्चित रूप से यह सामाजिक दायित्वों के निर्वहन की दृष्टि से कवि का महत्वपूर्ण कर्तव्य-निर्वहन कहा जा सकता है ।
कुछ उदाहरण देना अनुचित न होगा । प्रायः बुरी संगत में फॅंसकर शराब पीने की शुरुआत होती है । कवि ने बड़ी बारीकी से इस मद्यपान-प्रक्रिया की शुरुआत का निरीक्षण किया है, तभी तो वह इतना जीवंत छंद लिख पाया है :-

पीने वालों के सॅंग रहकर, कभी नहीं पीने वाला
अक्सर ही फॅंस जाया करता, बेचारा भोला-भाला
मदिरा मुफ्त पिलाने उसको, मदिरालय में ले जाते
फिर तो वह घर-बार छोड़कर, प्रतिदिन जाता मधुशाला
(छंद संख्या 30)

लेकिन अच्छी संगत का असर भी अच्छा होता है । जिसको शराब पीने की लत पड़ चुकी है, वह आर्य समाज से जुड़ेगा तो चमत्कारी असर हो सकेगा । देखिए, कवि ने कितना सुंदर छंद लिखा है :-

आर्य समाजी आगे बढ़कर बंद कराते मधुशाला
घर-घर में वे यज्ञ करा कर, तुड़वा देते हैं प्याला
मधु-सेवी भी यदि व्रत लेकर, इस समाज में आ बैठे
निश्चय ही वह सदा-सदा को तज देवेगा मधुशाला
(छंद संख्या 60)

कवि सम्मेलनों में भी शराब खूब चलती है । इसका भी अच्छा चित्रण अभिनव-मधुशाला के कवि ने किया है :-

कुछ कवियों की आदत होती, कविता पढ़ते पी हाला
बिना पिए प्रेरणा न मिलती, कैसा बुरा व्यसन पाला
नगर-नगर होते मुशायरे, गली-गली कवि सम्मेलन
मदिरा के प्यालों से सज कर, मंच बना है मधुशाला
(छंद संख्या 52)

सबसे ज्यादा तो घर-गृहस्थी को नुकसान पहुॅंचता है। इसलिए शराब के दुष्परिणाम पर कवि ने अनेक छंद इसी विषय को लेकर लिखे हैं। एक छंद देखिए कितना मार्मिक है:-

बीबी रही बिलखती घर पर, पहुॅंच गया वह मधुशाला
लेने दवा चला था घर से, पी बैठा दारु-प्याला
बीवी तो ऑंसू पी मरती, पर वह मदिरा पीता है
प्रेमचंद की ‘कफन’ कहानी, याद दिलाती मधुशाला
(छंद संख्या 22)

प्रायः लोगों को यह कहते हुए सुना जाता है कि जो काम किसी प्रकार से नहीं हो सकता, वह शराब की एक बढ़िया-सी बोतल से हो जाता है। इसी प्रसंग पर कवि का एक सटीक छंद पढ़ने योग्य है। देखिए :-

अलादीन का है चिराग यह, छोटा सा मधु का प्याला
कितना भी हो दुर्लभ कारज, कैसा भी उलझन वाला
ले पहुॅंचो मदिरा की बोतल, खोल पिला दो बन साकी
काम तुम्हारा कैसा भी हो, कर देगी यह मधुशाला
(छंद संख्या 44)

अभिनव-मधुशाला के छंद अपनी मनमोहक लयात्मकता के कारण बहुत आकर्षक बन पड़े हैं। सरल भाषा ने इनमें प्राण फूॅंक दिए हैं । इनका सस्वर पाठ निश्चय ही एक चेतना पूर्ण वातावरण का सृजन करने में समर्थ है ।
अंत में ‘अभिनव मधुशाला’ के संबंध में इस समीक्षक द्वारा लिखित चार पंक्तियॉं प्रशंसा-उपहार के रूप में समर्पित हैं:-
मधुशाला में घातक जानो, मिला हुआ मधु का प्याला
बर्बादी की आ कगार पर, जाता है पीने वाला
सच्ची राह दिखाती जग को, आर्य समाजी चेतनता
शिव अवतार सरस रस्तोगी जी की ‘अभिनव मधुशाला’

134 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

"विकृति"
Dr. Kishan tandon kranti
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
मात पिता का आदर करना
मात पिता का आदर करना
Dr Archana Gupta
मैं तुम्हारी क्या लगती हूँ
मैं तुम्हारी क्या लगती हूँ
Akash Agam
मैं तेरा कृष्णा हो जाऊं
मैं तेरा कृष्णा हो जाऊं
bhandari lokesh
स्वतंत्रता का अनजाना स्वाद
स्वतंत्रता का अनजाना स्वाद
Mamta Singh Devaa
🙅आज का दोहा🙅
🙅आज का दोहा🙅
*प्रणय*
माँ
माँ
Vijay kumar Pandey
एक सत्य मेरा भी
एक सत्य मेरा भी
Kirtika Namdev
#संसार की उपलब्धि
#संसार की उपलब्धि
Radheshyam Khatik
गज़ल
गज़ल
Phool gufran
विद्यार्थी को तनाव थका देता है पढ़ाई नही थकाती
विद्यार्थी को तनाव थका देता है पढ़ाई नही थकाती
पूर्वार्थ
जय गणेश देवा
जय गणेश देवा
Santosh kumar Miri
जीवन
जीवन
Mangilal 713
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
बोलना , सुनना और समझना । इन तीनों के प्रभाव से व्यक्तित्व मे
बोलना , सुनना और समझना । इन तीनों के प्रभाव से व्यक्तित्व मे
Raju Gajbhiye
ज़िंदगी सबको अच्छी लगती है ,
ज़िंदगी सबको अच्छी लगती है ,
Dr fauzia Naseem shad
@@ पंजाब मेरा @@
@@ पंजाब मेरा @@
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
#माँ, मेरी माँ
#माँ, मेरी माँ
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
*Lesser expectations*
*Lesser expectations*
Poonam Matia
आकांक्षाएं
आकांक्षाएं
Kanchan verma
अक्सर चाहतें दूर हो जाती है,
अक्सर चाहतें दूर हो जाती है,
ओसमणी साहू 'ओश'
अफ़सोस
अफ़सोस
Shekhar Chandra Mitra
शुभ प्रभात
शुभ प्रभात
Rambali Mishra
बारिशों में कुछ पतंगें भी उड़ा लिया करो दोस्तों,
बारिशों में कुछ पतंगें भी उड़ा लिया करो दोस्तों,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
उलझनें
उलझनें
Karuna Bhalla
4474.*पूर्णिका*
4474.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
तुम्हारी बात कैसे काट दूँ,
तुम्हारी बात कैसे काट दूँ,
Buddha Prakash
कुछ बीते हुए पल -बीते हुए लोग जब कुछ बीती बातें
कुछ बीते हुए पल -बीते हुए लोग जब कुछ बीती बातें
Atul "Krishn"
खर्च हो रही है ज़िन्दगी।
खर्च हो रही है ज़िन्दगी।
Taj Mohammad
Loading...