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1 Dec 2022 · 6 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम : साधना के पथ पर (साहित्यिक रचनाएं)
संकलन : अशोक विश्नोई एवं शिशुपाल ‘मधुकर’
प्रकाशक : सागर तरंग प्रकाशन, मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश
संपर्क 94581 49223 तथा 94122 37422
प्रकाशन वर्ष : 2022
_________________________ समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उ. प्र.)
मोबाइल 99976 15451
_________________________
नोट : यह समीक्षा टैगोर काव्य गोष्ठी , रामपुर में 30 नवंबर 2022 बुधवार को पढ़ी जा चुकी है।
—————————————-
समृद्ध लेखनी सम्मान 2022
मुरादाबाद की साहित्य, कला एवं संस्कृति को समर्पित संस्था संकेत का जब रजत जयंती वर्ष 2022 में हुआ, तब उसने मुरादाबाद मंडल के पॉंच कवियों को “समृद्ध लेखनी सम्मान 2022” प्रदान किया। अच्छी बात यह रही कि केवल तात्कालिक रूप से सम्मानित करने मात्र से संस्था ने अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं की अपितु उन पांच सम्मानित रचनाकारों के रचनाकर्म को एक पुस्तक का रूप दिया और इस तरह न केवल अपने रजत जयंती वर्ष की स्मृतियों को सदा-सदा के लिए अक्षुण्ण बना लिया अपितु पाठकों तक यह संदेश भी पहुंचाया कि अच्छा रचना कर्म क्या होता है तथा जिस आधार पर पांच श्रेष्ठ रचनाकारों को समृद्ध लेखनी सम्मान 2022 प्रदान किया, उनकी रचनाएं किस कोटि की है ।
भूमिका में संस्था के अध्यक्ष अशोक विश्नोई तथा महासचिव शिशुपाल ‘मधुकर’ ने ‘संकेत’ की विचारधारा को व्यक्त करते हुए लिखा है कि “साहित्यिक खेमेबाजी से दूर रहकर सभी नवोदित कवियों-साहित्यकारों को प्रोत्साहन देना, वरिष्ठ साहित्यकारों के ज्ञान व अनुभवों से समाज को अवगत कराने में ‘संकेत’ का भरसक प्रयास रहता है ।” इसमें संदेह नहीं कि प्रस्तुत पुस्तक इसी विचार-श्रंखला की एक कड़ी है ।
जिन पांच रचनाकारों को ‘समृद्ध लेखनी सम्मान 2022’ से अलंकृत किया गया है, उनमें पहला नाम डॉ. प्रेमवती उपाध्याय का है। आपका जन्म 17 फरवरी 1947 को जिला रामपुर उत्तर प्रदेश के डोहरिया गांव में हुआ था । अंग्रेजी में एम. ए. तथा होम्योपैथिक चिकित्सा की उपाधि प्राप्त डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय ने विवाह के उपरांत मुरादाबाद को अपना कर्मक्षेत्र बना लिया । आपके कई गीत पुस्तक में संकलित किए गए हैं। इनमें आशावादी स्वर है तथा शुद्ध आचरण का आग्रह है । व्यक्ति को आत्मबल प्रदान करने वाला स्वर इन रचनाओं में देखा जा सकता है। लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर ही व्यक्ति को गंतव्य की प्राप्ति होती है । आपने अपने गीतों में इसी भाव को व्यक्त किया है :

निश्चित हमें मिलेगी मंजिल, लक्ष्य साध लें अभी यहीं
जाना नहीं ढूंढने हम को, राह मिलेगी यहीं कहीं
(प्रष्ठ 5)
कुछ गीतों में विलुप्त होते जा रहे मानवीय संबंधों का वर्णन है, तो कुछ में श्रृंगार-भाव अत्यंत शालीनता से प्रकट हुआ है :-

जब तुम आत्मसात हो जाते, बदला-बदला जग लगता है
(प्रष्ठ 7)
गीतों में वैराग्य भाव भी है और सृष्टि का प्रतिपल बदलता परिदृश्य भी चित्रित हो रहा है :-

तू समर्पित हुआ व्यर्थ जिनके लिए
इन सहारों का कोई भरोसा नहीं
राह में यह कहॉं छोड़ दें पालकी
इन कहारों का कोई भरोसा नहीं
(पृष्ठ 9)
पुस्तक के दूसरे “समृद्ध लेखनी सम्मान 2022” से अलंकृत रचनाकार श्री श्रीकृष्ण शुक्ल हैं । आपका जन्म 30 अगस्त 1953 को मुरादाबाद में हुआ। भारतीय स्टेट बैंक के प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त होकर साहित्य और सहजयोग प्रवक्ता के रूप में सक्रिय हैं। आपके गीत, गजल, नवगीत और गीतिका पुस्तक में संग्रहित हैं । इन रचनाओं में जहां एक ओर मतदाताओं के लिए सार्थक प्रेरणा है, धन और यश-वैभव की निरर्थकता का संदेश है, द्वेष और ईर्ष्या आदि दुर्गुणों को समाप्त करने का आग्रह है, वहीं दूसरी ओर एक श्रंगार प्रधान रचना भी है। एक व्यंग रचना भी है- “रात स्वप्न में रावण आया”। इसमें कवि ने संसार में चारों तरफ विभिन्न रूपों में रावण को जीवित पाया है। सम्मानित कविवर लिखते हैं :-

आज हर तरफ दिखता रावण
आगे रावण पीछे रावण
कहीं भ्रूण-हत्या करवाता
कहीं रेप करवाता रावण
इसको कोई हरा न पाया
संकेतों में मात्र जलाया
(पृष्ठ 27)
पर्वतों के प्रति एक मनोहरी गीत पुस्तक में संचयित किया गया है ।‌ इसमें धरती पर पर्वतों के अस्तित्व के कारण जो सौंदर्य बिखरा हुआ है, उसका सुमधुर वर्णन देखने में आता है। कवि ने लिखा है :-

हरि हर का आगार यहॉं है
और मोक्ष का द्वार यहॉं है
हिम शिखरों से कल-कल बहती
गंगा यमुना धार यहॉं है
इनमें ही कैलाश बसा है
इनमें ही केदार है
पर्वत हैं तो धरती का श्रृंगार है
(प्रष्ठ 20)

तीसरे कवि प्रेमचंद प्रेमी हैं। आपका जन्म 25 जुलाई 1964 को ग्राम जैतरा, धामपुर, जिला बिजनौर में हुआ। आपके मुक्तक, गजल तथा अतुकान्त रचनाएं पुस्तक में दी गई हैं । आपकी उदार दृष्टि ने संसार में सबके लिए सुखद जीवन की मंगल कामना की है। इस दृष्टि से एक मुक्तक प्रस्तुत है :-

सच्चा सुख और प्यार मिले
खुशियों का संसार मिले
मेरे मन की यही कामना
सबको ही उजियार मिले
( पृष्ठ 37 )
ओंकार सिंह विवेक चौथे कवि हैं, जिनको संकेत संस्था ने “समृद्ध लेखनी सम्मान 2022” प्रदान किया है । आपका जन्म 1 जून 1965 को ग्राम भोट बक्काल, जिला रामपुर में हुआ। प्रथमा बैंक के प्रबंधक पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर आप प्रमुखता से गजल साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं । गजल के अतिरिक्त समीक्ष्य पुस्तक में आपके दो नवगीत तथा कुछ कुंडलियां और दोहे भी हैं । सभी रचनाएं उच्च कोटि की हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई आपकी लेखनी बहुत सादगी के साथ परिदृश्य को चित्रित कर देती है । कई बार बात बहुत धीमे से कही गई होती है, लेकिन चोट गहरा करती है । राजनीति, आर्थिक विषमता तथा सामाजिक कुरीतियों को आपने अपनी लेखनी का विषय बनाया है । गजल के मामले में जो प्रवाह आपकी कलम में है, वह अन्यत्र देखने में कम ही आता है । कुछ शेर इस दृष्टि से उद्धृत करने योग्य हैं :-

कुछ मीठा कुछ खारापन है
क्या-क्या स्वाद लिए जीवन है

कैसे ऑंख मिलाकर बोलें
साफ नहीं जब उनका मन है

शिकवे भी उनसे ही होंगे
जिनसे थोड़ा अपनापन है
(पृष्ठ 52)
उपरोक्त पंक्तियों में जितनी सरलता से कवि की लेखनी प्रवाहमान हुई है, वह अपने आप में एक अनोखी उपलब्धि कहीं जाएगी । ऐसा लगता है जैसे भाव अपने आप शब्दों का आकार ले रहे हों। पाठक को कहीं कोई उलझन महसूस नहीं होती। नवगीत में भी कवि ने रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े प्रसंगों को उठाया है और सरलता से चित्रित कर दिया । यह सरलता ही कवि की लेखनी का प्राण है । देखिए :-

छत पर आकर बैठ गई है अलसाई-सी धूप
सर्द हवा खिड़की से आकर
मचा रही है शोर
कॉंप रहा थर-थर कोहरे के,
डर से प्रतिपल भोर
दॉंत बजाते घूम रहे हैं
काका रामसरूप
( पृष्ठ 59 )
“समृद्ध लेखनी सम्मान 2022” से अलंकृत पुस्तक की पांचवी और अंतिम रचनाकार श्रीमती मीनाक्षी ठाकुर का जन्म धामपुर, जिला बिजनौर में हुआ । आप सहायक अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं । आपका एक व्यंग लेख तथा कुछ गीत पुस्तक में दिए गए हैं । इनमें राजनीतिक दलों-नेताओं की पैंतरेबाजी और महंगाई के चित्र हैं, पुरानी परंपराओं के क्षरण पर वेदना का प्रकटीकरण है तथा जीवन में अश्रुओं को छिपा लेने की कला ही जीवन जीने की कला माना गया है ।
पुस्तक में माता और पिता के संबंध में श्रीमती मीनाक्षी ठाकुर ने जो गीत लिखे हैं, वह बहुत मार्मिक हैं। मां के संबंध में आपने लिखा है :-

मॉं के हाथों-सा लगे
नर्म धूप का स्वाद
ख्वाबों के स्वेटर बुनें
झुर्री वाले हाथ
सर्दी में दुबका कहीं
अपनेपन का साथ
चिकने विंटर-क्रीम से
मतलब के संवाद
(प्रष्ठ 74 )
मां का जो चित्र आपने खींचा है, वह कहीं न कहीं वास्तविकता का चित्रण कहा जा सकता है । आपने पिता के संबंध में एक गीत लिखा है ,जिसका शीर्षक है -“नहीं पिता के हिस्से आया”
मॉं के संबंध में कवियों ने बहुत कुछ लिखा है, लेकिन पिता अक्सर अछूते रह जाते हैं । सातों दिन, चौबीसों घंटे निरंतर कार्य में लगे रहने वाले पिता की श्रमशीलता को आपने जितने पैनेपन के साथ आकार दिया है, वह देखते ही बनता है । पिता के हिस्से में कोई रविवार ही नहीं आया अर्थात कोई छुट्टी का दिन नहीं आया, इसी बात को लेकर आपने एक गीत लिखा है :-

नहीं पिता के हिस्से आया
कभी कोई इतवार

राशन के थैले में लाता
हर संभव मुस्कानें
उसके अनुभव के सांचे में
ढलती हैं संतानें
उसके दम से मॉं की बिंदी बिछिया, कंगना, हार
(पृष्ठ 68)
इस तरह अस्सी पृष्ठ का यह रचनाकर्म सही मायने में समृद्ध लेखनी सम्मान 2022 को वास्तविक और स्थायित्व से भरा हुआ एक ऐसे सम्मान का स्वरूप दे रहा है, जो पाठकों को रचनाकारों से परिचित कराने का काम भी करेगा और उनके हृदय और मस्तिष्क को काव्य के रसास्वादन का लाभ भी पहुंचाएगा । सम्मान के अनूठे आयोजन के लिए संकेत-संस्था बधाई की पात्र है।

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