पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा
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थियोसॉफी के आयाम
लेखक: उमाशंकर पांडेय
प्रकाशक: भारतीय शाखा थियोसॉफिकल सोसायटी
कमच्छा, वाराणसी 221010
प्रथम संस्करण ः2019
मूल्य ₹300
थिओसोफी के आयाम विद्वान लेखक उमाशंकर पांडेय की 300 पृष्ठ की एक ऐसी विचार प्रधान पुस्तक है जिसको पढ़ कर पाठक थियोसॉफिकल सोसायटी की विचारधारा और उद्देश्यों से भली-भांति परिचित हो सकते हैं । इस पुस्तक में, उमाशंकर पान्डेय ने पिछले काफी समय से जो लेख लिखे हैं उनमें से 21 लेखों का संग्रह है। इन पंक्तियों के लेखक का यह सौभाग्य है कि त्रैमासिक पत्रिका “धर्म पथ” में इनमें से अनेक लेख उसके द्वारा पहले से पढ़े जा चुके हैं और उनकी सराहना निश्चित रूप से की जानी चाहिए ।उमा शंकर पांडेय थियोसॉफिकल सोसायटी की उत्तर प्रदेश फेडरेशन के सचिव हैं और अनेक वर्षों से थियोसॉफिकल सोसायटी के आंदोलन का संचालन करने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त है। अतः जो विचार उन्होंने व्यक्त किए हैं वह पुस्तक को बहुत मूल्यवान बनाते हैं।
प्रारंभ में ही लेखक ने प्रस्तावना में यह स्पष्ट कर दिया कि थिओसोफी के लिए कई कथनों में से एक कथन है कि यह धर्म विज्ञान और दर्शन का समुच्चय है ।इसी विचार के अनुरूप पुस्तक में लेख हैं ।
थियोसॉफिकल उद्देश्यों को एक लेख में लेखक ने ठीक ही समझाया है कि “एक अधिक अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए यह सलाह दी जाती है कि मनुष्य को भूतकाल की स्मृतियों से नहीं जुड़ना चाहिए और न ही भविष्य की आकांक्षाओं से किंतु वर्तमान में पूरा सचेत रहना चाहिए ।”(पृष्ठ 94 )
देवाचन पर एक लेख शीर्षक” जन्म मृत्यु जन्म” में लिखा है-” मनुष्य जितना ही आध्यात्मिक रूप से विकसित होता है उसका स्वर्ग लोकीय जीवन उतना ही लंबा होता है।” (पृष्ठ 70 )
“एक साधारण मनुष्य के लिए देवाचन में आनन्द पूर्ण होता है । यहां पर समय के व्यतीत होने का आभास समाप्त हो जाता है। यहां कोई असफलता या निराशा नहीं होती ।”(पृष्ठ 68 )
साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि देवाचन एक अवस्था है न कि एक स्थान (पृष्ठ 69 )
“मानवता की सेवा ” शीर्षक अध्याय सर्वाधिक आकर्षित करता है । इसमें लेखक ने कहा है-” मानव जीवन का उच्चतम आदर्श सेवा करना ही बताया गया है। वही सबसे बड़ा होता है जो सर्वोत्तम सेवा करता है ।”(पृष्ठ 103 )
सेवा भावना का इस अध्याय में विस्तार से विश्लेषण किया गया है ।लेखक ने निस्वार्थ भाव से तथा सेवा करने वाले को स्वयं अपने लिए किसी प्रकार की भी प्राप्ति जैसे नाम यश पुण्य लाभ स्वर्ग या मुक्ति का भी विचार नहीं होना चाहिए, बताया है।”( पृष्ठ 106)
लेखक ने कुछ नए विचारों को बहुत सुंदर रूप में भी सामने लाने का काम किया है। उदाहरण के लिए लेखक का कथन है कि जो सरकारी योजनाएं जरूरतमंदों के लिए चल रही हैं, उन योजनाओं की जानकारी देकर उनका लाभ अगर सब तक पहुंचा दिया जाए तो यह भी मनुष्यता की सेवा है। कुरीतियों और अंधविश्वासों को समाज से हटाना जैसे दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, नशा ,धूम्रपान आदि के संदर्भ में कार्य करना भी मानवता की सेवा है ।इसके अलावा किसी भी कार्य में तड़क-भड़क तथा औपचारिक आयोजनों पर भारी खर्चा करना भी लेखक ने गलत बताया है।( पृष्ठ 107, 108)
इस तरह थियोसोफी के विचारों को वास्तव में नए आयाम देने का कार्य लेखक ने बखूबी किया है। थियोसॉफी के विविध आयामों में ही एक यह भी लेखक ने ठीक ही लिखा है कि “हमारे स्कूलों में और सामान्य जीवन में भी प्रतियोगिता की भावना गलत है। हमें प्रसन्न होना चाहिए, जब दूसरे सफल हों। उनका सम्मान करें ,उनको आशीर्वाद दें, ना कि स्वयं अपने लिए प्रतिष्ठा आदर सफलता प्रेम को झपटें।” (पृष्ठ 145)
मूर्ति पूजा पर सैकड़ों हजारों वर्षों से विद्वान चिंतन करते आ रहे हैं ।लेखक ने थिओसोफिकल सोसाइटी की संस्थापिका मैडम ब्लेवेट्सकी को उद्धृत करते हुए कहा है कि ” एक व्यक्ति किसी मूर्ति या प्रतिमा में अपनी जीवनशक्ति भेज कर या अपनी एस्ट्रल देह के आयाम द्वारा या किसी सूक्ष्म आत्मा को उस मूर्ति में प्रवेश कराकर उसको जीवंत कर सकता है। इस प्रकार प्रतिमाएं या जड़ पदार्थ का कोई खंड सिद्धियां प्राप्त व्यक्तियों के सुषुप्त इच्छाशक्ति से जीवंत होते हैं।”( पृष्ठ 176 )
मूर्ति पूजा के संबंध में लेखक ने “धर्म का विज्ञान या सनातन वैदिक धर्म “पुस्तक का उदाहरण दिया है और कहा है कि बाहरी चित्रों की पूजा का यह विशेष महत्व है कि यह विकासशील मन को एकाग्रता में प्रशिक्षित करता है । फिर भी यह कुछ उच्चतर की ओर जाने के साधन के रूप में ना कि इससे सर्वदा के लिए चिपके रहने के लिए।( पृष्ठ 178 )
लेखक का कथन है कि “उपनिषद एक वास्तविकता को निराकार ही बताने पर जोर देता है और कहता है कि ब्रह्म अकल्पनीय अवर्णनीय और निर्गुण है ।उस असीम वास्तविकता की एक धारणा बना कर हम उसको बौना कर देते हैं ।”(पृष्ठ 179)
एक स्थान पर लेखक ने अपने विचारों के समर्थन में कबीर के निम्नलिखित दोहे को भी उद्धृत किया है:-
मन मक्का दिल द्वारिका काया काशी जान
दस द्वारे का देह यह तामे ज्योति निदान
( पृष्ठ 191)
इस प्रकार के लोकप्रिय उद्धरण देने से पुस्तक पढ़ने की दृष्टि से और भी रुचिकर हो गई है।
सर्वविदित है कि थियोसॉफिकल सोसायटी की स्थापना तथा उसका प्रचार प्रसार प्रमुखता से महात्माओं द्वारा मैडम ब्लेवेट्सकी को प्रेरणाएं देने के आधार पर ही हुआ है । लेखक ने महात्माओं के बारे में अपनी पुस्तक में विस्तार से उल्लेख करके ठीक ही किया है। इससे पता चलता है कि “महात्मा लोग एक गुह्य भ्रातृ संघ के सदस्य हैं, भारत के किसी विशेष दार्शनिक स्कूल के सदस्य नहीं हैं। यह जीवित व्यक्ति हैं ,न कि आत्मा या निर्माण काया । उनका ज्ञान और सीख बहुत अधिक है और उनके जीवन की व्यक्तिगत पवित्रता और भी महान है। फिर भी वे मर्त्य मनुष्य हैं और उनमें से कोई भी 1000 वर्ष की आयु का नहीं है जैसा कि कुछ लोग कल्पना करते हैं।” (पृष्ठ195, 196)
लेखक ने यह ठीक ही टिप्पणी महात्माओं के संबंध में की है कि” फिर भी हम लोग उनको केवल एक साधारण मनुष्य के रूप में नहीं सोच सकते हैं ।वह मनुष्य होते हुए भी मनुष्य से बहुत अधिक हैं।”
थिओसोफी के जटिल और गूढ़ प्रश्नों पर तथा सीक्रेट डॉक्ट्रिन जैसी पुस्तक पर चर्चा कई बार पाठकों को एक कठिनता का अनुभव करा सकता है , लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि थिओसोफी का साहित्य प्रमुखता से अंग्रेजी में ही उपलब्ध है तथा लेखक ने उसको हिंदी में उपलब्ध कराकर वास्तव में हिंदी जगत की बहुत बड़ी सेवा की है । हिंदी के पाठकों को थियोसोफी के सिद्धांतों को जानने का एक सुंदर और महान अवसर “थियोसोफी के आयाम” पुस्तक के माध्यम से उमाशंकर पांडेय ने उपलब्ध कराया है, इसके लिए उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना उचित ही होगा ।
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समीक्षक :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451