पुस्तक समीक्षा-शजर थकते नहीं ‘काव्य-कृति’
हृदय को छूती कविताएँ………
कवयित्री-राज गुप्ता
पुस्तक-शजर थकते नहीं
पृष्ठ-196
प्रकाशक-साहित्य चन्द्रिका प्रकाशन, जयपुर
‘चलते रहने का नाम जीवन है, थम गए तो भला किस काम के?’ उक्त पंक्ति को सार्थक करती साहित्यसेवी एवं वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती राज गुप्ता के कविता संग्रह ‘शजर थकते नहीं’ में निराशा कम आशा के भाव सौ फीसदी आँखों के समक्ष हैं।
शब्दों में गहराई का पता कविताओं के शीर्षकों से चलता है कि कवयित्री ने पाठकों के हृदय को छूने वाले जज़्बातों को किस कदर लयबद्ध तरीके से पिरोया है कि पुस्तक में सम्मिलित सभी कविताओं को पढऩे के बाद भी पुन: पढऩे की इच्छा जाग्रत हो जाए।
संग्रह में ‘नाम’ से लेकर ‘अस्तित्वों पर विश्वास नहीं’ तक कुल 142 कविताओं में लगभग प्रत्येक पृष्ठ पर संदेशात्मक पंक्तियाँ शामिल हैं। जीवन के झंझावातों से निकलकर नये आयाम स्थापित करने हेतु कवयित्री की बानगी देखिए—
‘चढ़े हिमालय की चोटी पर,
फिर भी ऊपर चढऩा है,
हमें हिमालय के शिखरों पर
नया हिमालय गढऩा है।’
कविता संग्रह के शीर्षक से पुस्तक का सार प्रतीत होता स्पष्ट दिखाई देता है, कि जब वृक्ष नहीं थकते तो हम क्यों रुकें?
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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