पुस्तक समीक्षा : रामायण प्रसंग (लेखक- श्री मनोज अरोड़ा)
राजस्थान के लब्धप्रतिष्ठित लेखक , समीक्षक , और सामाजिक कार्यकर्ता श्री मनोज अरोड़ा की पुस्तक ” रामायण प्रसंग ” स्वामी विवेकानन्द द्वारा 31 जनवरी ,1900 ई० को अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित पैसाडेना नामक स्थान में “शेक्सपियर की सभा” में दिये गये भाषण की विशद् ,तार्किक और भावपूर्ण विस्तृत अभिव्यक्ति है ,जिसे पुस्तक के रूप में पाठकों के मध्य इन्होंने प्रस्तुत किया है | लेखक द्वारा प्रणीत यह पुस्तक एक ऐतिहासिक , मूल्यात्मक और आध्यात्मिक सकारात्मक सोच के साथ उत्कृष्ट विचारों की प्रेरणास्रोत के रूप में सशक्त पुस्तक बन पड़ी है | कुल 20 अध्यायों में वर्गीकृत आलोच्य पुस्तक में लेखक ने सूक्ष्म शब्दों के माध्यम से विराट अभिव्यक्ति को उद्घाटित किया है | भावों की उत्कर्ष अभिव्यक्ति को इंगित करती अरोड़ा जी की यह पुस्तक सहज, सरल और बोधगम्य शब्द-संयोजन के साथ ही रीति-नीति-प्रीति की उदात्त भावाभिव्यंजना को अभिलक्षित करती हुई श्रेष्ठता को प्राप्त हुई है | यही नहीं मानवता के विविध इंद्रधनुषी रंगों को आत्मसात् करते हुए श्रेष्ठ मानवीय गुणों की प्रतिष्ठा को भी लेखक ने बल प्रदान किया है | एक ओर जहाँ वाल्मीकि के माध्यम से लौकिक और अलौकिक यथार्थ प्रेम ,करूणा और अनुभूति को रोचक और तथ्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया है तो दूसरी ओर राजा दशरथ के माध्यम से ऐतिहासिकता, धर्म और मानवता के साथ ही वचनबद्धता एवं कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को स्पष्ट किया है | सीता के जन्म के माध्यम से धरती की विशालता का मानवीकरण करते हुए राम विवाह के माध्यम से शक्त -परीक्षण एवं योग्यतम की उत्तरजीविता को बताने के साथ ही सीता-स्वयंवर के माध्यम से नारी-स्वातंत्र्य का उद्घोष भी लेखक ने किया है | राम-वनवास की घटना के आलोक में प्रतिज्ञापालन ,भ्रातृत्वप्रेम और अर्धांगिनी की परिणय-निष्ठा को पाठकों से रूबरू करवाने के साथ ही हनुमान जी से भेंट के रूप में अनन्य भक्ति ,श्रद्धा और निष्ठा को प्रतिष्ठित किया है | इसी क्रम में लेखक ने सीता की खोज ,लंका दहन , हनुमान की वापसी , विभीषण लंका त्याग ,अंगद की चुनौती, मेघनाद वध , रावण वध और सीता की अग्निपरीक्षा नामक अध्यायों में भी उदात्त मानवीय गुणों के माध्यम से आध्यात्मिक अनुभूति एवं आध्यात्मिक सतत् विकास को सर्वोपरि मानते हुए लेखक ने अपना लेखन-कर्म किया है | यही कारण है कि इनकी पुस्तक में शब्दों की मूक अभिव्यक्ति भी बोलती प्रतीत हुई है जो कि जीवन के वास्तविक स्वरूप को उजागर करती है |
समग्र रूप से कहा जा सकता है कि लेखक मनोज अरोड़ा ने ऐतिहासिक विषय को आत्मसात् करते हुए वर्तमान के ज्वलंत मुद्दों को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है ,ताकि मानवता में वे सभी सद्गुण और संस्कार निहित रहें जिनसे मानवता जीवित है | आशा है प्रबुद्धजनों को यह पुस्तक पसंद आएगी |
जय हिन्द ! जय भारती !
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डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”
ढ़ोसी,खेतड़ी ,झुन्झुनू (राज०)
लेखक , समीक्षक ,साहित्यकार ,जैवविविधता विशेषज्ञ एवं खण्ड सहकारिता निरीक्षक , सहकारिता विभाग ,राजस्थान सरकार |