पुस्तक समीक्षा : तिनके उम्मीदों के
पुस्तक : तिनके उम्मीदों के
कहानीकार : कविता मुखर
कहते हैं कि संसार में जीवन जीना भी एक कला है, लेकिन यह निर्भर उस इन्सान पर करता है कि वह कला को किस प्रकार से प्रदर्शित करता है। कोई इन्सान इस हद तक मंजि़ले-मकसूद को पाने के लिए दिन-रात एक कर देता है कि अल्पसमय में ही उसकी कहानी लोगों की जुबाँ पर आ जाती है, तो कोई ताउम्र संघर्ष के बाद भी निष्फल-सा रह जाता है। जीवन एक कहानी है, उबड़-खाबड़ राहों पर चलना और फिर ऊँचाईयों को छू जाना ये बुलंद हौसलों की निशानी है। कुछ ऐसी ही कहानियों को सिलसिलेवार प्रस्तुत किया है युवा साहित्यकार कविता मुखर ने।
‘तिनके उम्मीदों के’ कहानी संग्रह में कविता मुखर ने कुल तेईस कहानियों को शामिल है, जिसमें परिवार की खट्टी-मीठी बातें हैं, कहीं सोचने-समझने की नज़ाकत है तो कहीं बेज़ुबान रिश्तों के प्रति वफादारी। कहीं राखी की चमक में छुपा बहन का प्यार है तो कहीं बाप के हृदय में बेटी के लिए दुलार।
प्रथम कहानी ‘खिडक़ी’ से शुभारंभ कर अन्तिम कहानी ‘शादी के लड्डू’ तक लेखनी को विराम देते हुए रचनाकार कविता मुखर के शब्दों में कहीं उल्लास से पाँव थिरकते हैं तो कहीं-कहीं आँखों से खुशी के आँसू छलकने लगते हैं। ‘चार दिनों का प्यार’ कहानी में पक्षियों के लिए हृदय में प्रेम भरा है और पाठकों के लिए बेहतर संदेश भी है। आगे चलते हुए कहानी ‘माँ और धरा’ में धरती माँ के लिए बेइतंहा प्यार। कड़ी कुछ आगे बढ़ती है जिसमें ‘मंथरा का दर्द’ कहानी पढ़ते वक्त मन भाव-विभोर हो जाता है तो ‘शादी के लड्डू’ कहानी की रचना करते समय कविता मुखर ने पाठकों को खूब गुदगुदाया, हँसाया और सपनों की दुनिया में घुमाया भी है।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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