पुस्तक समीक्षा-“तारीखों के बीच” लेखक-‘मनु स्वामी’
पुस्तक समीक्षा-“तारीखों के बीच”
लेखक-‘मनु स्वामी’
मन के साथ-साथ पलकें भी सजल हो पड़ीं, जब “तारीखों के बीच” पुस्तक हाथों में आई…एक अनदिखा अपनापन अनायास ही हाथों से लिपट गया। इतनी सहृदयता, इतनी निश्छलता जिसके व्यक्तित्व में थी कि जिनसे मिलने पर लगा कि उनका एक-एक शब्द जैसे एहसासों को पिरोए था, उनकी अनमोल पुस्तक की छुअन भी उतनी ही अभूतपूर्व थी! वो प्रसन्नता के विस्मित भाव और किलक कर पुस्तक को बाहों में भर लेने की अल्हड़ उत्सुकता जैसे मुझे किशोरावस्था में खींच कर ले जा रही थी….
सही कहते हैं लोग, लेखनी सम्पूर्ण व्यक्तित्व का आइना होती है । “डायरी” के हर पन्ने को पलटते हुए लगता था जैसे उस समय को जी रही हूँ ।
अनोखी अभिव्यक्ति का सरल रूप, सहज भाव से जोड़ता गया मुझे। आ. परमेन्द्र जी से, वाणी से परिचय हुआ तो, सहज प्रकाशन से भी मेरी आँख मिल गयी। जहाँ एक तरफ कोरोना की त्रासदी स्याही में डूबी हुई थी …वहीं उज्जवल कल के सपने भी चमक उठे थे। मनु जी की सशक्त लेखनी को पढ़कर सचमुच ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ कि उन्होने इस जीवन में इतने अच्छे लेखक से मिलवाया। कुछ अनुभूतियाँ आँखों के आँसुओं के साथ विचारों को चमत्कृत ढंग से छू गयी जैसे..
“इग्लैण्ड के किसी नगर में जन्मा यह फौजी यहाँ मुजफ्फरनगर के एक गुमनाम से कोने में चिरनिद्रा में सो रहा है । अपनों की छोड़िये ..जैसे की भी आहट को तरसता हुआ” ये पक्तियाँ अन्तर्मन को झकझोर गयी । कितनी सहजता से इतने सुदृढ़ भाव प्रकट कर दिये मनु स्वामी जी ने ..हर वाक्य पढ़ कर लगता है कि घटनाएं सामने घटित हो रही हैं। ‘पत्थर वाली सराँय’ से लेकर ‘इन्दु जी’ तक का सफर बहुत सकारात्मक रहा …हर उस कोने तक भाव पहुंच गये जहाँ से मनु जी ने संवाद उठाये ।’सताने वाला बूढ़ा’ का जिक्र भी बहुत सही जगह हुआ है ।
‘डा. रश्मिकांत’ हो या ‘पीस लाइब्रेरी की अक्लांत मृत्यु’ ….”मलबे से किताबों की सिसकियाँ” जैसे भाव मनु जी ही ला सकते हैं । ‘विजय पुष्पम जी की fb पोस्ट’ हो या ‘रागी भाई साहब का मास्क’ हर चित्रण बड़ी साफगोई से …प्रवाहपूर्ण ढंग प्रस्तुत किया गया है ।
मैं समीक्षा करने योग्य नहीं हूँ, पर पुस्तक पढने के बाद मेरे भाव स्वयमेव अभिव्यक्ति को आकुल हो उठे।
‘रश्मि लहर’
(रश्मि संजय श्रीवास्तव)
लखनऊ