पुस्तक समीक्षा-चिंतन के क्षितिज
पुस्तक : चिंतन के क्षितिज
लेखिका : राज चतुर्वेदी
विद्वानों ने जहाँ चिंता को नुकसानदेह माना है, वहीं चिंतन को शुभ तथा शिखर तब पहुँचने का मार्ग भी बताया है।
चिंतन ही एक ऐसा साधन या विकल्प है, जिसके द्वारा पूर्व में हो चुके प्रसिद्ध साहित्यकारों के बताए सुझावों एवं वाक्यों को जीवन में उतार तथा उस पर विचार कर नए आयाम स्थापित कर सकते हैं, जिसका फायदा केवल हमें ही नहीं, बल्कि समूचे संसार को भी होता है।
साहित्य-क्षेत्र में अगर निबंध या लघु आलेख पर चिंतन करें तो साहित्यकार की लेखनी को सर्वप्रथम प्रणाम! जिसके द्वारा हमें वह सीखने या जानने को मिलता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं करते।
इस प्रकार गूढ़ एवं गहराई के दर्शन करवाती प्रतीत होती है, वरिष्ठ साहित्यकार एवं साहित्यप्रेमियों के भविष्य पर गंभीरता से विचार करने वाली लेखिका श्रीमती राज चतुर्वेदी की नवकृति ‘चिंतन के क्षितिज।’ जिसका शीर्षक ही विचार करने पर मजबूर कर देता है।
प्रारंभ में लेखिका ने हिन्दी साहित्य के मील पत्थर ‘महाप्राण निराला’ के जीवन-संघर्ष पर प्रकाश डालते हुए व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रस्तुत किया है तो आगे चलते हुए ‘समकालीन कथा साहित्य’ पर भी चर्चा की है।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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