Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Apr 2018 · 3 min read

पुस्तक समीक्षा-‘कटघरे’ (कहानी-संग्रह)

पुस्तक-कटघरे
कथकार-डॉ. डेजी
समीक्षक-मनोज अरोड़ा
पृष्ठ-139
मूल्य-250

कटघरा केवल वह नहीं होता जो न्यायालय प्रांगण में लगा होता है और कोई इन्सान न्यायाधीश के समक्ष अपनी सफाई प्रस्तुत करता हो, कटघरा तो घर से शुरू होकर समाज के प्रत्येक कोने में मिल जाएगा जहाँ न चाहते हुए भी इन्सान उसमें उलझा रहता है। अगर जीवन-कहानी की बात करें तो ये भी कटघरे में ही कैद है, कहीं व्यक्ति हर तरफ से आजाद होते हुए भी खुलकर हँस नहीं सकता तो कहीं पुरुष की प्रधानता के बीच इतने फासले हैं कि पुरुष-प्रधान देश में स्त्री को घर की चारदिवारी में स्थित कटघरे में जीवनयापन करना पड़ता है।
शिक्षा क्षेत्र से जुड़ीं एवं सामाजिक गतिविधियों पर कलम चलाने वालीं वरिष्ठ कथाकार डॉ. डेज़ी द्वारा लिखा कथा-संग्रह ‘कटघरे’ परिवार तथा समाज पर आधारित है, जिसमें कथाकार ने समाज में फैली विसंगतियों को कुल 73 छोटी-बड़ी कहानियों के द्वारा पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। किसी कहानी में डॉ. डेज़ी ने स्त्री के अन्दुरूनी दर्द को समझा है तो कहीं स्त्री के अलग-अलग रूपों की दासतां को बंया किया है। पुस्तक के शुरू में कहानी ‘माँ’ उस स्त्री पर आधारित है जिसे तीन बेटियों को जन्म देने के बाद भी माँ का दर्जा नहीं मिलता क्योंकि रूढि़वादिता में फंसे पुरुष को तो वंश चलाने हेतु बेटे की चाह होती है। स्त्री तो न चाहकर भी कघटरे में ही खड़ी रहती है।
जो लोग समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन अपनी चारदिवारी में उनके सम्मान की क्या अहमियत होती है, उक्त तथ्य का प्रमाण ‘श्री जी’ कहानी से मिलता है। ‘शर्मा जी’ कहानी में कथाकार ने पाठकों को शिक्षादायक प्रमाण देते हुए लिखा है कि अगर किसी व्यक्ति में अटूट संस्कार भरे हों, वह ज्ञानी, ध्यानी या गुणों का भण्डार हो तो उसे स्वयं तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन संस्कारों के भण्डार में से कुछेक गुण अपनी आलौद में भरने चाहिएं ताकि वे खाली मटके की श्रेणी में न आएँ।
यह आवश्यक नहीं कि जिनमें हमारी आस्था हो या जो कार्य हमें आनन्द प्रदान करता हो, वह हमारे सहपाठियों को भी पसन्द आए, क्योंकि प्रत्येक इन्सान का अपना-अपना नज़रिया है। कुछ ऐसा ही दर्शाया गया है कहानी ‘प्रीति’ में। जहाँ प्रीति चाहती है कि जो मुझे अच्छा लगता है वह मेरे मित्रों को भी अच्छा लगे, उक्त विचारधारा कहाँ तक सही और कहाँ तक गलत है, यह हम सभी जानते हैं।
बीच पड़ाव के पश्चात् कथाकार ने कहानी ‘हम सब’ में लघु शब्दों के द्वारा शिक्षादायक प्रमाण दिया है कि जब हम जीवन के आखिरी पड़ाव में होते हैं, तब हमें पता चलता है कि हमने क्या खोया और क्या पाया? आखिरी पड़ाव में ‘चूक’ कहानी उन अभिभावकों को बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत करती है कि बच्चों को अतिआधुनिक सुविधाओं से थोड़ा बाहर निकाल उन्हें खुली हवा का भी अहसास करवाना चाहिए ताकि वे स्वस्थ भी रहें और समाज के प्रति सज़ग भी बन सकें। इससे अगली कहानी ‘हवा के संग’ साहित्य-जगत का दर्शन करवाती प्रतीत होती है जिसमें कथाकार लिखती हैं कि आज के दौर में सोशल साइट्स के द्वारा हम घर बैठे न जाने कितने प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मार्गदर्शन हासिल कर सकते हैं, इसलिए सोशल साइट्स को केवल इतना सोचकर दरकिनार न करें कि उन पर गलत प्रतिक्रियाएँ होती हैं। उक्त कहानी यह साबित करती है कि हमारी सोच पर हमारा जीवन टिका है, सोच सही होगी तो मार्गदर्शन भी बेहतर ही मिलेगा।
कुल मिलाकर कथाकार डॉ. डेज़ी द्वारा रचित ‘कघटरे’ कहानी-संग्रह प्रत्येक वर्ग के लिए फायदेमंद साबित होगा, ऐसी कामना की जा सकती है।
मनोज अरोड़ा
लेखक एवं समीक्षक
+91-7339944621, +91-9928001528

Language: Hindi
Tag: लेख
1729 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कीमती
कीमती
Naushaba Suriya
Life through the window during lockdown
Life through the window during lockdown
ASHISH KUMAR SINGH
*क्या देखते हो *
*क्या देखते हो *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
कहीं चीखें मौहब्बत की सुनाई देंगी तुमको ।
कहीं चीखें मौहब्बत की सुनाई देंगी तुमको ।
Phool gufran
कलयुग और सतयुग
कलयुग और सतयुग
Mamta Rani
बाल कविता: नानी की बिल्ली
बाल कविता: नानी की बिल्ली
Rajesh Kumar Arjun
*लिखी डायरी है जो मैंने, कभी नहीं छपवाना (गीत)*
*लिखी डायरी है जो मैंने, कभी नहीं छपवाना (गीत)*
Ravi Prakash
*हमारा विनाश कव शुरू हुआ था?* 👉🏻
*हमारा विनाश कव शुरू हुआ था?* 👉🏻
Rituraj shivem verma
इंतज़ार के दिन लम्बे हैं मगर
इंतज़ार के दिन लम्बे हैं मगर
Chitra Bisht
जॉन तुम जीवन हो
जॉन तुम जीवन हो
Aman Sinha
न मुझे *उम्र* का डर है न मौत  का खौफ।
न मुझे *उम्र* का डर है न मौत का खौफ।
Ashwini sharma
"आईने"
Dr. Kishan tandon kranti
मुड़े पन्नों वाली किताब
मुड़े पन्नों वाली किताब
Surinder blackpen
*होय जो सबका मंगल*
*होय जो सबका मंगल*
Poonam Matia
3886.*पूर्णिका*
3886.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
युवा शक्ति
युवा शक्ति
संजय कुमार संजू
औरत औकात
औरत औकात
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
पढ़ लेना मुझे तुम किताबों में..
पढ़ लेना मुझे तुम किताबों में..
Seema Garg
हर राह सफर की।
हर राह सफर की।
Taj Mohammad
Shankar Dwivedi (July 21, 1941 – July 27, 1981) was a promin
Shankar Dwivedi (July 21, 1941 – July 27, 1981) was a promin
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
सच्ची होली
सच्ची होली
Mukesh Kumar Rishi Verma
यही हाल आपके शहर का भी होगा। यक़ीनन।।
यही हाल आपके शहर का भी होगा। यक़ीनन।।
*प्रणय*
ଡାକ ଆଉ ଶୁଭୁ ନାହିଁ ହିଆ ଓ ଜଟିଆ
ଡାକ ଆଉ ଶୁଭୁ ନାହିଁ ହିଆ ଓ ଜଟିଆ
Bidyadhar Mantry
मन से उतरे लोग दाग धब्बों की तरह होते हैं
मन से उतरे लोग दाग धब्बों की तरह होते हैं
ruby kumari
मा शारदा
मा शारदा
भरत कुमार सोलंकी
ऐसा बेजान था रिश्ता कि साँस लेता रहा
ऐसा बेजान था रिश्ता कि साँस लेता रहा
Shweta Soni
आपकी सादगी ही आपको सुंदर बनाती है...!
आपकी सादगी ही आपको सुंदर बनाती है...!
Aarti sirsat
“दो बूँद बारिश की”
“दो बूँद बारिश की”
DrLakshman Jha Parimal
इबादत की सच्चाई
इबादत की सच्चाई
पूर्वार्थ
सपने
सपने
Santosh Shrivastava
Loading...