पुस्तक समीक्षा-अवध की लूट
पुस्तक : अवध की लूट
लेखक : केशव प्रसाद गुरु
साहित्य में शामिल ऐतिहासिक ग्रंथ अनमोल रत्न हैं, जिनकी कीमत आंकी नहीं जा सकती, क्योंकि उनसे हमें वह अद्भुत एवं अतीत में समाई जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। जिनकी केवल वर्तमान में हमें ही नहीं बल्कि, हमारी आने वाली पीढिय़ों को भी खास आवश्यकता है। हमारे देश की धरा पर अलग-अलग प्रान्तों मेें प्रतापी राजा-महाराजा हुए, जिन्होंने ऐतिहासिक धरोहरों के साथ-साथ देश की प्रजा को भी ब्रिटिश शासन के रहते फिरंगियों से सुरक्षित रखा और राज्यों एवं राजधानियों को भी।
पुस्तक ‘अवध की लूट’ में वरिष्ठ इतिहासकार श्री केशव प्रसाद गुरु (मिश्रा) ने लगभग अट्ठारहवीं तथा उन्नीसवीं सदी के इतिहास को दर्शाया है, जिसमें ब्रिटिश राज (ईस्ट इण्डिया कम्पनी) के कारनामें एवं दूसरी ओर प्रजा की रक्षा करने वाले शासक जिन्हें नवाबों के रूप में जाना जाता था। उन्होंने किस तरह राज्य तथा राजधानियों को आबाद रखा एवं उसके साथ-साथ अंग्रेजों के साथ न जाने कितनी बार आमने-सामने होकर दो-दो हाथ भी किए। उसी बीच नवाबों के विश्वासपात्र व्यक्तियों ने किस प्रकार घर के भेद अंग्रेजों को दिए और किस प्रकार अंग्रेजों ने भारत को निशाना बनाने की गलत नीयत रखी, जिसमें वो नाकाम रहे और अन्त में उन्हें थक-हारकर भारत छोडक़र उल्टे पाँव भागना पड़ा।
श्री केशव प्रसाद गुरु (मिश्रा) ने उक्त पुस्तक में कुल आठ अध्यायों को सम्मिलित किया है, जिसमें प्रारम्भ में अवध के नवाबों के इतिहास की जानकारी करवाई है एवं इसके पश्चात् कड़ी को आगे बढ़ाते हुए गाजीउद्दीन हैदर से अमजद अलीशाह तक के शासन का पूरा विवरण पेश किया है।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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