पुस्तक समीक्षा : अंत भले का भला
पुस्तक : अंत भले का भला
कथाकार : कुसुम अग्रवाल
वर्तमान समय में अगर बालकों को अच्छाई एवं सच्चाई की डगर पर कोई अग्रसर कर सकने में कोई सौ फीसदी मददगार साबित हो सकते हैं तो वह हैं बाल-साहित्यकार और उनके द्वारा रचित कहानियाँ, कविताएँ या शिक्षादायक किस्से।
क्यूँकि आज के दौर में बालकों के लिए फिल्म धारावाहिक या चलचित्रों से कहीं अधिक फायदेमंद सिद्ध हो रही हैं प्रेरणादायक एवं शिक्षादायक कहानियाँ। कुछ ऐसी ही शिक्षाप्रद कहानियों से भरपूर हैं विख्यात बाल-साहित्यकार श्रीमती कुसुम अग्रवाल की नवकृति ‘अंत भले का भला’।
सर्वप्रथम पुस्तक का शीर्षक पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करता प्रतीत होता है। जिसमें लेखिका ने बालकों को प्रथम संदेश मात्र चार अक्षरों में पूरी पुस्तक का सार बताने का प्रशंसनीय कार्य किया है।
कहानी-संग्रह के शुभारम्भ में प्रथम कहानी ‘जिद की हार’ में लेखिका ने केवल इतना ही नहीं बताया कि बालकों को हमेशा जिद से दूर रहना चाहिए, बल्कि उससे होने वाले नुकसान को भी उजागर किया है।
इसी प्रकार कड़ी को आगे बढ़ाते हुए ‘मेरी सखी’ कहानी के माध्यम से कुसुम अग्रवाल ने सच्ची मित्रता को दर्शाया है, तो बीच पड़ाव में पुस्तक शीर्षक पर आधारित कहानी ‘अंत भले का भला’ में उच्च कोटि का संदेश भी दिया है कि राह चलते इन्सान को भी कभी गैर नहीं बल्कि अपना समझना चाहिए।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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