Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Apr 2024 · 2 min read

पुस्तक विमर्श (समीक्षा )- ” साये में धूप “

पुस्तक – ” साये में धूप ”

रचनाकार – दुष्यंत कुमार जी

प्रकाशक – राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली

” साये में धूप “, हिंदी ग़ज़ल परंपरा के शीर्षस्थ ध्वजवाहक ( अलंबरदार ) दुष्यंत कुमार की क्रान्तिकारी ग़ज़लों का मजमुआ ( संग्रह ) है जिसकी हर ग़ज़ल में रचनाकार के अंतर्मन की पीड़ा, हताशा एवं राजनीति के प्रति रोष की भावना स्पष्ट परिलक्षित होती है… पाठक ही नहीं स्वयं एक शाइर होने के नाते मैं यह कह सकता हूँ कि जब अवसाद और तकलीफ़ अपने चरम पर पहुँच जाते हैं तो विद्रोह के स्वर, शब्दों का रूप ले लेते हैं…. दुष्यंत कुमार जी ने जो ग़ज़लें कही हैं उसमें उन्होंने सर्वहारा वर्ग के हित के लिए आवाज़ उठाई है… साये में धूप संग्रह की हर ग़ज़ल अत्यंत प्रभावशाली है जो तत्कालीन लोकतान्त्रिक कुव्यवस्था पर कुठाराघात है….
उनकी ग़ज़ल का मतला ” कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए , कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए ” -अपने आप में सरकार के झूठे और आधारहीन वादों की पोल खोल देता है.. दुष्यंत का अंदाज़ ए बयाँ अल्हदा है उन्होंने अपनी बेबाक सोच को उम्दा अल्फ़ाज़ का पैरहन दिया है… संग्रह में उनकी एक और ग़ज़ल का शे’र -” एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है ,जिसमें तहख़ानों में तहख़ाने लगे हैं ” -भी गहरा मफ़हूम छोड़ता है शाइर के अनुसार यहाँ मृत्यु उपरांत भी धर्मगत राजनीति, खोखले रीति रिवाज़ चैन लेने नहीं देते… हर तरफ़ उहापोह का वातावरण है जिसमें कहीं कोई आशा की किरण निकले और सामाजिक व्यवस्था को नयी दिशा प्रदान करे…
दुष्यंत कुमार ने हिंदी में न केवल ख़ूबसूरत ग़ज़लें कहने का हुनर दिखाया है बल्कि उन्होंने यह भी बताया कि एक ऐसा शख्स जो सच कहने की हिम्मत रखता है वो हज़ारों ख़ामोश लोगों से ज़्यादा मुस्तनद ( बेहतर / बढ़कर ) है……संग्रह से उनकी ग़ज़ल का एक और मतला –
“इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है ” भी प्रगतिवादी साहसिक विचारधारा को दर्शाता है…. मन की तड़प और बेचैनी को रचनाकार ने लफ्ज़यत में बखूबी ढाला है… मेरे ख़्याल से ‘ साये में धूप ‘ सम्भावनाओं के द्वार पर दस्तक देने वाला शानदार ग़ज़ल संग्रह है जिसके अब तक 60 से ज़्यादा संस्करण प्रकाशित ( शाया ) हो चुके हैं और मंज़र ए आम ( विमोचन ) पर आने के तवील अरसे ( लम्बे समय ) भी यह दीवान आज तलक प्रासंगिक है…. निःसंदेह दुष्यंत कुमार की यह अमर कृति है जो उनके इंक़लाबी तेवर को और वसुधैव कुटुंबकम के व्यापक नज़रिये ( नज़बुल ऐन ) को ज़माने से रूबरू कराती है…..

© डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर [ शायर एवं शिक्षाविद ]
©काज़ी की क़लम

1 Like · 111 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
Ajad Mandori
यूं ही कोई शायरी में
यूं ही कोई शायरी में
शिव प्रताप लोधी
धुन
धुन
Sangeeta Beniwal
होली
होली
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
परोपकार
परोपकार
ओंकार मिश्र
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
Annu Gurjar
पितरों का लें आशीष...!
पितरों का लें आशीष...!
मनोज कर्ण
सितमज़रीफ़ी
सितमज़रीफ़ी
Atul "Krishn"
जीवन में संघर्ष सक्त है।
जीवन में संघर्ष सक्त है।
Omee Bhargava
ज़िंदगानी
ज़िंदगानी
Shyam Sundar Subramanian
दोहा बिषय- दिशा
दोहा बिषय- दिशा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
सत्य कुमार प्रेमी
पोषित करते अर्थ से,
पोषित करते अर्थ से,
sushil sarna
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
पूर्वार्थ
"नजर से नजर और मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,
Neeraj kumar Soni
गजल सगीर
गजल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
हरवंश हृदय
बच्चे
बच्चे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राष्ट्र हित में मतदान
राष्ट्र हित में मतदान
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
Dr. Man Mohan Krishna
अगर प्रेम है
अगर प्रेम है
हिमांशु Kulshrestha
अनुभव 💐🙏🙏
अनुभव 💐🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
शेखर सिंह
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव "अज़ल"
लवकुश यादव "अज़ल"
#चिंतनीय
#चिंतनीय
*प्रणय*
"समरसता"
Dr. Kishan tandon kranti
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
कृष्णकांत गुर्जर
Loading...