पुस्तक मेले
पुस्तक मेले महज़ यादें…….!
विद्यालयों में पुस्तक मेले के बड़े पैमाने पर आयोजन हुआ करते थे।आज समय इतना फ़ास्ट हो गया है कि फ़ास्ट फ़ूड के साथ साथ जीवन शैली भी फास्ट होती जा रही है।हमारे माता पिता हमारी युवा पीढ़ी को न्यू जनरेशन कहते थे, किन्तु आज की युवा पीढ़ी तो इंटेरनेट जनरेशन बन गई है, हाँ माना कि तरक्की अच्छी बात है पर जब तरक्की आपको हैंडीकैप बनाने लगे तो हमें संभल जाना चाहिए। आज के इस गूगल चाचा आॅन लाइन वर्ल्ड में ऐसे मेले ज्ञान के लिए आॅफ लाइन होते जा रहे हैं।हालांकि प्रतिवर्ष नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में लेखकों की वार्ताओं, सेमिनारों और बच्चों की रुचि से संबंधित स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय पुस्तकों का प्रचार करने वाले लगभग हज़ारों प्रदर्शक शामिल होते हैं। जिसकी प्रासंगिकता भागीरथी सरिता निर्मल गंगा की तरह अमर है। किताबें महाज्ञान प्राप्ति का साधन हैं जो सदैव झरने सी ज्ञान झरती रहेंगी।
जो रोमांच हमें पुस्तक मेले से पुस्तकें खरीदकर पढ़ने में होता था,उस अहसास और चाव की तुलना आज के ई-बुक फेयर से कदापि नहीं की जा सकती। क्योंकि नेट पर उपलब्ध जानकारी एक तालाब के समान है जिससे आज की इन्टरनेट जनरेशन सिर्फ बाल्टी भर पढ़ पाती है और उसमें से भी बस मघ भर का स्मरण-बोधन रहता है जबकि प्रकृति ने मानव की ऐसे रचना की है कि वह कभी अपनी इच्छा- आकाक्षाओं के चलते तृप्त नहीं हो पाता अतः उसकी यही अतृप्ति उसे सदैव समंदर की चाह में भटकाती है। अतः यदि प्रत्येक विद्यालय में , संगठन या NGO द्वारा एरिया वाइज़ पुस्तक मेलों का आयोजन किया जाए तो यह प्रयास अध्ययनशीलता को जिन्दा रखने में प्राणवायु का कार्य करेगा। पठन पाठन की परम्परा को कायम रखने में पुस्तक मेलों जैसे सुआयोजन किसी बुझते दिये में तेल बढ़ाये जाने की तरह ही साबित होंगें।हम सब मिलकर जब तक अपने अपने स्तर पर कुछ अधिक और नया पढ़ने की ललक इस इंटरनेट जनरेशन में नहीं जगाएँगे तब तक पुस्तकों की बगिया में पाठक रूपी पक्षियों का कलरव नहीं सुनाई देगा,इतना ही नहीं वो दिन दूर न होगा जब शब्दकोश तथा अन्य जानकारी के अलावा, रात को क्या खाया था ये पूछने पर भी हमारी इंटरनेट जनरेशन गूगल पर टाइप कर के जवाब देगी।इसलिये आॅफ लाइन पढ़ने का चाव जगाये रखने के लिये विद्यार्थियों में पुस्तकों से रिश्ते की डोर को मजबूत करना होगा, क्योंकि आज की जिंदगी फास्ट फूड से लेकर फास्ट स्टडी तक ही सीमित रह गयी है। वे आज के फेक और रेपयुग में सोने के खरेपन की बजाय पीताम्बरी से मंजे पीतल की चकाचोंध से प्रभावित हैं। तो पढ़ते रहें पढ़ाते रहें ज्ञान से संस्कार- संस्कृति को आगे बढ़ाते रहें।
नीलम शर्मा……✍️