*पुस्तक का नाम : अँजुरी भर गीत* (पुस्तक समीक्षा)
पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक का नाम : अँजुरी भर गीत
*प्रकाशक ** : अनुसंधान प्रकाशन* , एम एफ-4, 178/ 512 ,गली नंबर 2 ,श्याम पार्क मैन, साहिबाबाद ,गाजियाबाद 201005 मोबाइल 90451 29941
प्रथम संस्करण : 2021
मूल्य ₹150
कवि : वसंत जमशेदपुरी
सीमा वस्त्रालय ,राजा मार्केट ,
मानगो बाजार ,डिमना रोड ,
जमशेदपुर , झारखंड 831012
मोबाइल 79 7990 9620
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समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
244901मोबाइल 99976 15451
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विचारों की भावनात्मक अभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ माध्यम सदैव से गीत ही रहे हैं। संवेदनशील मनुष्य अपने आप को गीतों में अभिव्यक्त करता रहा है। हृदय की वेदना और उल्लास का आकार सर्वाधिक सशक्त रूप से गीतों में उभर कर सामने आया है ।वास्तविकता यही है कि जब व्यक्ति के जीवन में भावनाएं प्रबल हो जाती हैं ,तब जिस तरह पर्वत से सरिता का स्रोत फूट पड़ता है ठीक वैसे ही मनुष्य के भीतरी मानस से गीत के रूप में भावनाओं का प्रवाह बहता है और जहां जहां तक इसका मधुर नाद सुनाई पड़ता है ,यह सबको अपनी बाहों में भर कर अनुकूल अभिव्यक्ति से भर देता है ।
प्रेम जीवन का आधार है । इसी से गतिविधियां शुरू होती हैं -यह बात वसंत जमशेदपुरी के गीत संग्रह अँजुरी भर गीत को पढ़कर भली-भांति समझी जा सकती है । अधिकांश गीत श्रंगार पर लिखे गए हैं । प्रिय की स्मृति ,उससे मिलना ,बातें करना ,उसका चले जाना और फिर मन के भीतर एक कसक का बने रहना -इन्हीं भावनाओं के उतार-चढ़ाव में गीतकार वसंत जमशेदपुरी का संभवतः उदय हुआ है । ऐसे अनेक गीत हैं ,जिनमें श्रंगार पक्ष प्रमुखता से मुखरित होता है। इन गीतों में अद्भुत प्रवाह है । ऐसे गीतों में गीत संख्या 4 , 7 , 11 ,36 , 39 प्रमुख रूप से चिन्हित किए जा सकते हैं ।
किंतु श्रंगार वसंत जमशेदपुरी के गीतों का मुख्य स्वर नहीं रहा । उनकी चेतना ने उन्हें सामाजिक और राष्ट्रीय सरोकारों के साथ गहराई से जोड़ दिया और गीत राष्ट्र-निर्माण तथा सात्विक विचारों के आधार पर समाज-रचना के उनके शस्त्र बन गए । ऐसे गीतों में गीत संख्या 12 , 14 ,27 ,28 ,43 ,45 ,48 ,69 ,75 ,78 ,79 विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सामाजिक विषमताएं कवि को आंदोलित करती हैं और वह अपने गीतों से इस व्यथा को अलग नहीं कर पाता ।
राष्ट्रभक्ति का भाव एक अन्य मुख्य स्वर है, जिससे कवि का गीत-कोष समृद्ध हुआ है ।
सरलता से अपनी बात कहने में कवि निष्णातत है ।यही तो कवि की खूबी है।भाषा प्रवाहपूर्ण है । शिल्प की सजगता का ध्यान रखा गया है । जो कुछ कवि ने कहना चाहा है ,वह पाठक तक सुगमता से पहुंच जाए, इसमें कवि को सफलता प्राप्त हुई है।
पहला गीत ही सादगी से बात कहने की दृष्टि से दृष्टव्य है :-
शारदे माँ ज्ञान दे दो
ज्ञान का वरदान दे दो
कब से चरणों में पड़ा हूँ
कुछ इधर भी ध्यान दे दो
माँ से माँगने का इतना सरल शब्दों में कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता । लगता है जैसे भक्त भगवान से बातें कर रहा हो।
ईश वंदना को ही दूसरे गीत में दोहराया गया है । इस बार प्रकृति का सुंदर चित्रण देखते ही बनता है :-
पर्वतों से है उतरती
झूमती गाती जो सरिता
भर रही हिरणी कुलाचें
या कोई मनमस्त वनिता
गीत संख्या 36 में कवि की विरह-वेदना संसार की ठोकरें खाकर प्रौढ़ता की स्थिति को प्राप्त हो गई है । उसने प्रेम के रहस्य को भी समझ कर लिखा :-
मैंने जिस से नाता जोड़ा
सारा जग पल भर में छोड़ा
वक्त पड़ा तो आज उसी ने
हाय ! अपरिचित – सा मुंह मोड़ा
श्रंगार के गीत लिखने में कवि को महारत हासिल है । वह गीत संख्या 39 में नायिका का सौंदर्य चित्रण करते हुए लिखता है :-
प्यार नाम है तेरा रूपसि
दूजा कोई नाम न देना
हिरनी जैसी चंचल चितवन
निर्झर जैसा तेरा यौवन
मुक्त गगन के इस पंछी को
सजनी कभी लगाम न देना
श्र्ंगारिक गीतों की अधिकता के बाद भी अगर इस गीत संग्रह को अपनी मूल्यवान भेंट से कोई समृद्ध कर रहा है तो वह इसकी सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना ही है । गीत संख्या 12 में सामाजिक विषमताओं का मार्मिक चित्रण देखने को मिलता है :-
भूखा मँगरु बैठा सोचे
आज नहीं कुछ काम मिला
लाल कार्ड भी बन न सका है
आशाओं का ढहा किला
साहूकार डांटता है नित
पिछला कर्ज चुकाओ ना
कुछ गीत अपनी उपदेशात्मकता के कारण वस्तुतः पाठ्यक्रम में रखे जाने के योग्य हैं। गीत संख्या 27 प्रदूषण के संबंध में एक ऐसा ही गीत है :-
जिनसे हम हैं जीवन पाते
करते उनको खूब प्रदूषित
गंदे नाले डाल-डालकर
करते रहते उनको दूषित
मानव की मनमानी पर अब
सरिता केवल अश्रु बहाए
पुस्तक का संभवत: एकमात्र बालगीत बहुत प्यारा है । नन्ही मुन्नी चिड़िया इस गीत में अपनी वेदना व्यक्त करती है । आत्म निवेदन शैली में गीत इस प्रकार है :-
मैं नन्ही मुन्नी चिड़िया हूं
थोड़ा दाना – पानी दे दो
मत मुझको पिंजरे में पालो
मुझको प्यारी है आजादी
घास फूस से काम मुझे है
तुम्हें मुबारक सोना चाँदी
धरती से बस आसमान तक
उड़ने की मनमानी दे दो
( गीत संख्या 32 )
रावण-दहन देखकर कवि के मन में एक विचार आया और उस विचार के साथ नेताओं का चित्र उसके मानस में उभरता चला गया । गीत का मुखड़ा और प्रथम अंतरा कितना चोट करने वाला है ,देखिए:- (गीत संख्या 45)
हर नुक्कड़ पर रावण बैठा
बोलो कितने हनन करोगे
कब तक रावण दहन करोगे
गली गली में चोर-उचक्के
चौराहे पर बैठे डाकू
मुख से जपते राम-नाम कुछ
लिए बगल में छुरियाँ चाकू
जिन्हें चुना वे ही धुनते हैं
कैसे इनका दमन करोगे ?
गीत संख्या 28 में इस बात को कुशलतापूर्वक दर्शाया गया है कि जनप्रतिनिधि बनने के बाद लोग अपना घर भरने में लग जाते हैं और समाज की चिंता नहीं करते । प्रभावी भाषा-शैली में कवि ने भावों को इस प्रकार अभिव्यक्त किया है:-
एक बार मुखिया बनने दो
मैं भी कुछ कर जाऊंगा
कुछ को तोड़ूँ ,कुछ को जोड़ूँ
धन की खातिर माथा फोड़ूँ
कोई अगर विरोध करे तो
उससे अपना नाता तोड़ूँ ।।
सरकारी पैसों से अपने
घर में नल लगवाऊँगा ।।
केवल नकारात्मकता ही कवि के खाते में नहीं है । राष्ट्रहित में कही गई सकारात्मक चीजों को भी उसके हृदय ने उल्लास पूर्वक ग्रहण किया और शासन की नीति गीतों में प्रस्फुटित होने लगी । ” सबका साथ ,सबका विकास ,सबका विश्वास “– इस भाव को समाहित करते हुए कवि ने एक प्यारा-सा गीत लिख डाला । यह एक प्रकार से राष्ट्रीय गीत की श्रेणी में रखा जा सकता है । गीत संख्या 78 इस प्रकार है :-
है भारत की शान तिरंगा
हम सबकी पहचान तिरंगा
सबका साथ विकास सभी का
सच्चा है विश्वास सभी का
मातृभूमि के रखवालों का
यह प्यारा मधुमास सभी का
आओ इस पर तन मन वारें
सैनिक का सम्मान तिरंगा
कुल मिलाकर एक सौ गीतों में भावों की सुंदर बगिया सजाने का प्रयास अभिनंदनीय है। कवि की लेखनी में प्रवाह है ,शिल्प-कौशल है ,शब्दों का प्रचुर भंडार है और उनके उपयोग की विशेषज्ञतापूर्ण कला है । अधिकांश गीत हृदय को छूते हैं । निष्कर्षतः पुस्तक की भूमिका में प्रसिद्ध हिंदी कवि डॉ. कृष्ण कुमार नाज( मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश निवासी) के इस कथन से निश्चित ही सहमति व्यक्त की जा सकती है कि श्री माम चंद अग्रवाल “वसंत जमशेदपुरी” गीत के सशक्त हस्ताक्षर हैं।