पुस्तकें और मैं
५)
” पुस्तकें और मैं ”
पुस्तक मेरी सबसे अच्छी साथी
हमेशा साथ ज्यों दिया और बाती
यह मेरी ऐसी दोस्त है जो
हरदम मेरा साथ निभाती है
सही गलत की राह दिखाती है
अच्छे बुरे की पहचान कराती है
गलत होने पर बहुत डाँट लगाती है
सही होने पर उत्साह बढ़ाती है
सच्ची हमदम, सहेली है सच्ची
कभी बनती बुजुर्ग, कभी बनती है बच्ची
एक वैद्य के समान मेरी रक्षा करती है
ये पुस्तकें कड़वी दवाई की जैसे
मेरे दिमाग के स्वास्थ्य की देखभाल करती है
मानसिक रोगों को मुझे कोसों दूर भगाती है
मुझे कल-आज और कल से जोड़े रखती है
पुस्तक मेरा ज्ञान हर समय अपडेट रखती है
बोला गया तो कुछ समय तक ही रह पाता है
परंतु लिखा हुआ हमेशा एक मुकाम पाता है
छोटी हो या मोटी हो,हल्की या हो भारी
किताबें देती मुझको भरपूर जानकारी
किताबें मेरा मान हैं, मेरा सम्मान हैं
किताब से ही तो बचा हुआ ईमान है
किताब हमें आगे ले जाने वाली सीढ़ी है
यह ज्ञान का खजाना बढ़ता पीढ़ी दर पीढ़ी है
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता, इंदौर