पुष्प
पुष्प
खिले हैं कुछ ही पल पहले, जुड़े हैं शाख से दम भर
न तोड़ो तुम इन्हें असमय, जरा मुरझा तो जाने दो
हवा तूफान झोंकों से, बचा कर जिसने है रक्खा
न जाने कौन माली है, प्यार से जिसने है सींचा
जरा खुशबू हवाओं में, बिखर कर बह भी जाने दो
न तोड़ो तुम इन्हें असमय,,,,,,
चढ़ा कर मूर्ति पर तुमने, नहीं कोई तीर मारा है
ये रचना भी उसी की है, बाग जिसका उजाड़ा है
तितलियों को जरा मकरंद का कुछ स्वाद लेने दो
न तोड़ो तुम इन्हें असमय,,,,,,,,,