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19 Oct 2022 · 1 min read

“पुष्प”एक आत्मकथा मेरी

पेड़ पे लगी…
पुष्प बन खिली थी…
कलियाँ संग ।

एक भंवरा…
करी अठखेली रे…
पंखुड़ी संग ।

लगी नजर…
टूटा पुष्प डाली से…
मिटा अस्तित्व ।

टूट चुकी थी…
बिखरा जीवन ले…
भरी उड़ान ।

नवीन भोर…
खिली कुसुम कली…
मुस्काई फिर ।

फैला पंखुड़ी…
फिर बिखेरे रंग…
हाँ चमन में ।

अर्चना शुक्ला”अभिधा”

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 658 Views
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