“पुष्प”एक आत्मकथा मेरी
पेड़ पे लगी…
पुष्प बन खिली थी…
कलियाँ संग ।
एक भंवरा…
करी अठखेली रे…
पंखुड़ी संग ।
लगी नजर…
टूटा पुष्प डाली से…
मिटा अस्तित्व ।
टूट चुकी थी…
बिखरा जीवन ले…
भरी उड़ान ।
नवीन भोर…
खिली कुसुम कली…
मुस्काई फिर ।
फैला पंखुड़ी…
फिर बिखेरे रंग…
हाँ चमन में ।
अर्चना शुक्ला”अभिधा”