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4 May 2024 · 1 min read

पुर शाम की तन्हाइयां जीने नहीं देती।

पुर शाम की तन्हाईयाँ जीने नहीं देती।
उस पर ये सितम वह मुझे पीने नहीं देती।

मैं जानता हूँ जख़्म सब नासूर बनेगें।
पर लरज़ती यादें इन्हें सीने नहीं देती।

दरियाव के बदले में है दरियाव ही मिलता।
वो शय है मुहब्बत जो सफ़ीने नहीं देती।

जब भी मिले पत्थर मिले तारीख देख लो।
दुनियां कभी आशिक को नगीने नहीं देती।

नज़रें मिली पल भर में वो दिल में उतर गए।
दीवानगी दिन चार महीने नहीं देती।

इक रोज़ खत्म होती है वह कौम सूख कर।
जो बहस को पानी व ज़मीनें नहीं देती।

दुनियां के “नज़र” देखिये दस्तूर निराले।
जीने नहीं देती ज़हर पीने नहीं देती।
Kumar Kalhans

Language: Hindi
1 Like · 64 Views
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