पुरूष
क्योंकि
मैं पुरूष हूँ
तो
मुझे
हक़ है
स्त्रियों पे
लांछन लगाने का
उन्हें मारने का
उन्हें सताने का
उन्हें हथियाने का
उनके शोषण का
और वो सब करने का
जिससे
उन्हें
नीचा दिखा सकूँ।
कारण
है कि
उनके जैसा
कोई महान
कृत्य
मैं
नहीं कर सकता ।
कोई सुन्दरता
ही नहीं
मुझ में।
मेरे
सारे आविष्कार
मुझे चिढातें हैं।
उनके निस्वार्थ
प्रेम और समर्पण
देखकर ।
तुलना
उनकी की जाती है
धरती,फूल,चांद से
जो मुझे खलतें हैं।
इसलिए तो हम उनसे जलतें हैं
क्योंकि हम उन्हीं के कोंख में पलते हैं।
-अजय प्रसाद