पुरुष विमर्श
शीर्षक:– पुरूष विमर्श
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पारूल कुछ लिखना चाह रही थी पर समझ न आरहा था क्या लिखे।कभी कभी लगता था कि शब्द जैसे रूठ गये ।यूँ ही बेमन से मोबाइल में आये संदेशों को देख रही थी। एक संदेश पर नज़रटिकी
“हैलो मैम ,नमस्कार ”
“हैलो मैम, आप सदैव स्त्री विमर्श पर ,उनपर हुये अत्याचारों पर लिखती है न ?”
नाम देखा कोई विपुल था ।इसने ये सब क्यों पूछा?कुछ सोच जबाव लिखा,
“जी हाँ, सभी जानते हैं इस बात को ।पर आपने क्यों पूछा?”
“मैम ,स्त्री विमर्श से आपका आशय क्या है ?स्त्री स्वतंत्रता ,हर तरह की आजादी ?स्त्री होने का फायदा ?”
लगा बंदा आक्रोश में है। पर उसके सवाल ने पारुल के मन में हलचल मचा दी।
“जी नहीं, मैं स्त्री विमर्श में मानसिक आजादी की पक्षधर हूँ।मर्यादित ,संस्कारित नव ख्यालों की हिमायती हूँ। अर्धनग्न सभ्यता और तथाकथित हाई कल्चर की नहीं।”जबाव देते वक्त मन में तल्खी उभर आई थी।
“फिर किस आजादी को स्त्री विमर्श कहती हैं आप?किसी पति को बेवजह सताना ,कानून की धमकी देकर नाजायज दबाव बनाना ,दहेज एक्ट के नाम पर कुछ भी करने के लिए मानसिक प्रताड़ना ..यह कोई क्यों नहीं समझता।”
पारुल समझ गयी विपुल किसी दबाव में हैं।फोन पर बात करने की अनुमति दे दी पारुल ने।
“मैं मैं दो बार अपने बच्चों को खो चुका हूँ ।पहली बार गर्भ में चार माह का,और दूसरी बार जन्म लेते वक्त। क्या मुझे बाप बनने की तमन्ना नहीं?क्या मुझे दुख नहीं। पर ससुराल वालों का कहना कि मेरी वजह से ही दोनों बार बच्चे इसदुनियाँ में न आ सके। दहेज एक्ट और पत्नी को सताने का बेबुनियाद इल्ज़ाम लगा कर जेल की धमकी।क्या यह कोई समझेगा?नारी के लिए बहुत लोग बिना सोचे समझे खड़े हो जाते हैं। पर पुरूष की पीड़ा ??मैम ,कभी हम जैसों की व्यथा को भी कलम का हिस्सा बनाइये।अगर आप सच में कलमकार.हैं।”
टुन टुन टुन ….जाने कितनी देर पहले फोन बंद हो चुका था।और पारुल निस्तब्ध
मनोरमा जैन पाखी
भिंड मध्य प्रदेश