पुरुष की वेदना और समाज की दोहरी मानसिकता
पुरुष की वेदना और समाज की दोहरी मानसिकता
पुरुषों को भी चाहिए होता है छोटी छोटी बातों से दिखने वाला लाड़-प्यार, उदास होने की थोड़ी सी आजादी, एक अटूट विश्वास भरा कांधा जहाँ सर रखकर वो भी रो सकें, और देर तक उनकी खामोशी का कोई साथी, पुरुषों में भी रहती है एक उपेक्षित स्त्री लेकिन समाज की दोहरी मानसिकता का एक उदाहरण ये भी है कि रोती हुई स्त्री को असहाय और रोते हुए पुरुष को स्त्री कह देते है..!