पुरुषोत्तम
वेदवेत्ता कौन होता है ?
‘अश्वत्थ’ वृक्ष का परिचित
जिसके पत्ते होते हैं
‘वेद’
‘अश्वत्थ’ केवल एक वृक्ष नहीं
इसमें समाया है
समस्त ज्ञान
‘अश्वत्थ’ की भाँति
संसार वृक्ष की शाखाएं/प्रशाखाएं
विस्तारित हैं
फैली हुई हैं
नीचे भी और ऊपर भी
और बढ़ी हैं गणों से
उनकी कोपलें विषय हैं
कर्मरूप बन्धन को रेखांकित करती हैं
इसकी जड़ें.
…
‘अश्वत्थ’ स्वरूप का जीव
परमधाम को प्राप्त होता है
यह लोक
‘क्षर’ व ‘अक्षर’
पुरुषों से सज्जित है
समस्त भूत प्राणी ‘क्षर’ हैं
‘अक्षर’ तो आत्मज्ञानी हैं
उत्तम पुरुष तो पृथक् है इससे
वह तो है ‘परमात्मा’
लोक और वेद में
पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित.