पुरुषार्थ
शीर्षक -” पुरुषार्थ ”
भाग्य भरोसे रहने वाले मानव तू विचार कर ।
कर्मपथ पर बढ़ना है तो आलस का संहार कर ।।
धैर्यपूर्वक चलता जा तू , आत्मबल पहचान ले ।
मिले जहाँ पर जो भी अच्छा, रुककर तू वो ज्ञान ले ।।
स्वार्थ भरे इस जग में तो सच्चा पुण्य परमार्थ है ।
“नर सेवा -नारायण सेवा ” नाम दूजा पुरुषार्थ है ।।
जान ‘धर्म ‘ का ‘मर्म ‘ तू , आगे ही बढ़ते रहना ।
अपने विवेक को जीवित रख सदकर्म करते रहना ।।
“काम ” यदि बन जाये ” वासना “तो विनाश कर डालेगा ।
अपने ‘पुरुषार्थ ‘की शक्ति से तू भवसागर तर डालेगा ।।
एक एक श्वास इस तन की तो औरों की सेवार्थ है ।
कर्म- पथ से मोक्ष -रथ तक पहुंचाये वो पुरुषार्थ है ।।
© डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम
28/3/2, अहिल्या पल्टन, इंदौर -452006
मप्र