पुराने शहर के मंजर निकलने लगते हैं!
पुराने शहर के मंजर निकलने लगते हैं
आँखें जहाँ भी खुले समन्दर निकलने लगते हैं!
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नसीहत है प्रेम तुम्हारा मेरे लिए
अब तो हर दिल में खंजर निकलने लगते हैं!
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जरा सा कमजोर हुए हम
लोग मुँह छिपाकर गली से निकलने लगते हैं!
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खुशियों का मंजर भी क्या खूब होता है
आसमान पर चलने को निकलने लगते हैं!
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सोचा नहीं फिर कभी कुछ
बिना सोचे हर कदम आगे निकलने लगते हैं!
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चोट जब खायी दिल ने तब समझ आया
मुहब्बत में आँसुओं के कतरे-कतरे निकलने लगते हैं!
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)