*पुराने दौर का #टेलीफोन* (हास्य-व्यंग्य)
पुराने दौर का #टेलीफोन (हास्य-व्यंग्य)
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टेलीफोन का भी एक दौर हुआ करता था। काले रंग का लगभग 9 इंच लंबा चौड़ा यह यंत्र ड्राइंग रूम की शोभा को बढ़ाता था। घरों के बरामदे में यह गृहस्वामी की प्रतिष्ठा का द्योतक हुआ करता था। आजकल की तरह जमाना नहीं था कि मोबाइल जेब में रखा और लिए – लिए घूम रहे हैं। तब टेलीफोन जिस स्थान पर एक बार प्रतिष्ठित हो जाता था, फिर वहाँ से टस से मस नहीं होता था।
टेलीफोन का एक हिस्सा रिसीवर अर्थात चोगा कहलाता था । उसके साथ लगभग दो-तीन फीट का तार जुड़ा रहता था। चोगा उठाकर लोग बात करते थे। रिसीवर का एक हिस्सा कान में तथा दूसरा हिस्सा मुँह के पास रखा जाता था। इस तरह एक साथ कान से सुनते रहते थे और मुँह से बोलते रहते थे । टेलीफोन का दूसरा हिस्सा वह था जिसमें एक गोल चक्र बना रहता था। इसमें शून्य से लेकर नौ तक के नंबर रहते थे, जिन्हें घुमा कर टेलीफोन मिलाया जाता था । एक बार में एक नंबर पूरा घुमाया जाता था । समय तो लगता था लेकिन टेलीफोन मिल जाया करता था । अगर किसी कारण से टेलीफोन न मिले तो फिर नंबरों के क्रम को दोबारा फिर घुमाना पड़ता था ।
टेलीफोन की घंटी जब पूरे घर में गूंजती था ,तो खुशी की लहर दौड़ जाती थी। अगर दो चार मेहमान बैठे हुए हैं और उनके सामने टेलीफोन की घंटी बज जाए तो इसका अर्थ बहुत शुभ सूचक माना जाता था। गर्व से गृह स्वामी की आँखें चौड़ी हो जाती थीं कि देखो हमारे घर टेलीफोन की घंटी बज रही है । टेलीफोन की घंटी इतनी तेज होती थी कि पूरे घर में कोई भी व्यक्ति कहीं पर भी हो ,उसे सुनाई अवश्य देती थी। कई बार घर के बाहर सड़क से गुजरने वाली व्यक्तियों को अथवा पड़ोसियों को टेलीफोन की घंटी सुनाई देती थी और वह ईर्ष्या से भर उठते थे।
टेलीफोन में दो प्रकार से खराबी आती थी । एक तो यह कि #डायलटोन नहीं है। दूसरी यह कि #टेलीफोनडेड हो गया। टेलीफोन डेड तब होता था ,जब उसे कान पर लगाओ और करंट आने की आवाज भी न सुनाई दे । डायल टोन नहीं आ रही है, इसका मतलब यह होता था कि करंट तो आ रहा है लेकिन डायल टोन नहीं आ रही है। अब यह डायल टोन क्या चीज होती है, इसको समझाना बड़ा मुश्किल है ?डायलटोन से अभिप्राय एक ऐसी मधुर ध्वनि से है जो टेलीफोन का चोगा उठाते ही कानों में गूँजने लगती है ।आजकल मोबाइल युग में वह डायलटोन की मधुर ध्वनि दुर्लभ हो गई है । जब टेलीफोन डेड हो जाता था, तो यह घर में शोक का सूचक होता था ।डायलटोन नहीं आ रही है ,इसका अर्थ एक प्रकार से हार्ट अटैक से लगा सकते हैं अथवा बुखार टेलीफोन को आ गया ,ऐसा समझ लीजिए। दोनों ही स्थितियों में माथे पर चिंता की लकीरें खींची जाती थीं। टेलीफोन की शिकायत एक विशेष नंबर पर दर्ज कराई जाती थी । और वह फिर अपने किसी #लाइनमैन को भेजते थे। लाइनमैन नवाबी ठाठ बाट के तथा नाज नखरे वाले लोग हुआ करते थे । प्रायः उन को खुश रखने के लिए लोग तीज त्यौहार पर कुछ विशेष भेंट दिया करते थे ताकि उनका टेलीफोन ठीक चलता रहे।
जिन लोगों के घरों में टेलीफोन नहीं होता था , वह अपने आस पड़ोस के टेलीफोन नंबर को #पीपीनंबर के तौर पर अपने लेटर पैड पर छपवाते थे। पीपी नंबर एक अद्भुत चीज होती थी । इसका अभिप्राय यह होता था कि इस नंबर का टेलीफोन इन सज्जन के घर अथवा कार्यालय के आसपास कहीं है तथा उस नंबर पर टेलीफोन करने के पश्चात इन्हें बुलाकर इनसे बात की जा सकती है । जब किसी के पास पीपी नंबर वाले सज्जन का टेलीफोन कहीं से आता था ,तब उनसे कह दिया जाता था कि आप टेलीफोन रख दीजिए। हम उन को बुलाते हैं। फिर किसी को भेजकर अमुक सज्जन को बुलाया जाता था ।अमुक सज्जन आते थे । बैठकर इंतजार करते थे और जब उनका टेलीफोन आ जाता था ,तब जाकर उनका कार्य पूरा होता था । क्योंकि यह कार्य आपसी मौहल्लेदारी अथवा रिश्तेदारी अथवा आस पड़ोस की दुकानों से संबंधित होता था , अतः जिन सज्जन के लिए टेलीफोन आता था उनको कई बार चाय भी पिलाई जाती थी और परस्पर मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान होता था । परस्पर संबंधों को प्रगाढ़ करने की दृष्टि से पीपी नंबर बहुत अच्छा कार्य करता था । हालाँकि कुछ लोग इसे बोझ समझते थे ।
वह जमाना था जब लोग टेलीफोन पर इतनी जोर से बात करते थे कि घर के अंदर कमरे में बैठकर भी अगर बात हो रही है तो घर के बाहर सड़क तक आवाज जाती थी, और लोग समझ जाते थे कि कोई सज्जन इस मकान के भीतर टेलीफोन पर बात कर रहे हैं। टेलीफोन से #ट्रंककाल मिलाई जाती थी। शहर से बाहर किसी दूसरे शहर के लिए बात करने हेतु ट्रंक काल बुक करनी पड़ती थी। टेलीफोन एक्सचेंज वाला दस-पाँच मिनट के बाद टेलीफोन मिलाकर ट्रंक कॉल पर बात करवाता था। 1975 -80 के आसपास रामपुर से दिल्ली के लिए 3 मिनट की ट्रंक काल शायद ₹50 के खर्चे पर मिला करती थी । अगर 3 मिनट के बाद किसी को जब टेलीफोन पर बात आगे बढ़ानी होती थी तो वह दुगना खर्च करने के लिए तैयार होता था ।अन्यथा 3 मिनट के बाद “आप का समय समाप्त हो गया”- कहकर बात काट दी जाती थी । फिर सहसा एक दिन मोबाइल कंपनियाँ अपना – अपना बातचीत का ऑफर लेकर बाजार में आ गईं। उसके बाद टेलीफोन का साम्राज्य बिखर गया।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451