पुराने खत
पुराने खत भी
भुलाए कहां भूलते हैं।
जलाये कहां जलते हैं।
भावप्रवण मजमून
मिटाये कहां मिटते हैं।
हसरतों के ज्वार…..
थमाये कहां थमते हैं।
—–+—–
पुराने खतों के
हृदय में संघनित
सुधि की खुरचन जमी होगी।
इज़हारी ह़र्फों की
रोशनाई में आज भी नमी होगी।
——-+——
पुराने खतों में
चंद लफ्जों में
जज़्बात कहां समाये होंगे।
धूंआ धूंआ से
गुबार सांसों में छाए होंगे।
——+——
पुराने खतों में
प्रेम इकरारी की
इजहारतहरीरी भी
दर्ज होगी।
अनकही इश्तियाक
आज तलक भी
अव्यक्त होगी।
——+——
पुराने खतों संग
क़ासिद की दस्तक
आज भी चौंका देती है
अंकित लफ़्ज़ों की बात
आज भी बतिया लेती है।
——-+——
संगीता बैनीवाल
क़ासिद = पत्र वाहक, इश्तियाक = चाह, इजहारतहरीरी = लिखी हुई गवाही, संघनित = गाढा किया हुआ, सुधि =याद।