## पुरानी याद ..डाकिये की ##
ज़माना बीत गया, तो तुमने याद न किया
हम ने तो रोजाना डाकिये से पूछा था
की, कहीं गलती से, लिख दिए हों दो हर्फ़ मेरे नाम
देख जरा , डाकिये कहीं तेरी चिठीयों में हैं क्या ??
वो कहता है, कौन करेगा याद तुमको
क्यूं बेवजह, रोज सताते हो यार, तुम मुझ को
याद करने वाले, कहीं लिखते हैं दो हर्फ़,
वो तो सीधे दिल में ऊपर आते हैं, और क्या !!
सुनकर उस डाकिये की बात, मैं गम में डूब गया
क्या मैं इतना इस काबिल न था, कि उसने याद भी न किया
खुद से पूछने लगा, मैं इक सवाज आज,
क्या मेरे दिल में , जख्मों के सिवा , और कुछ नहीं क्या ??
अजीत कुमार तलवार
मेरठ