पुरानी पीढ़ी
जिस पीढ़ी ने अपना जीवन, संघर्षों में खोया ।
संस्कार शिक्षा के बल पर,बीज प्रेम का बोया ।।
रिश्तों का संसार बसाने, जिसने लोहू सींचा।
अपने बलशाली हाथों से, जिसने कोल्हू खींचा।।
जिस पीढ़ी को ज्ञात नहीं था, ऐसा नवयुग आएगा।
इतनी जल्दी उस पीढ़ी से, सबका मन भर जाएगा।।
बेबश होकर अपने घर में, विवश विलग रहने को है।
जिसने एक जमाना देखा, वो पीढ़ी ढहने को है।।
पशुधन की सेवा की जिसने , गोबर से घर को लीपा।
घर की चौखट के अंदर ही, जिसका चौमासा बीता।।
जिस पीढ़ी का शुद्ध आचरण, जल तांबे का पीती थी।
सच्चे आदर्शों के बल पर, सादा जीवन जीती थी।।
उसको श्रमनिष्ठा प्यारी थी, कुल की कीरति थी प्यारी।
उसकी सेवा से दिखती थी, खेतों में फूली क्यारी।।
सूर्योदय से पहले उठकर, जिनके सैर सपाटे थे ।
मर्यादा जब घटती थी तो उनके सिर झुक जाते थे।।
चरणों में उनके तुम बैठो , अंतर की आंखें खोलो।
जीवन की आपाधापी में, उनसे दो बातें बोलो ।।
ध्यान रहे यह अंतिम पीढ़ी, लौट नहीं फिर आएगी।
जाते-जाते अंतिम क्षण तक, तुमको कुछ दे जाएगी।।