*पुरखों की संपत्ति बेचकर, कब तक जश्न मनाओगे (हिंदी गजल)*
पुरखों की संपत्ति बेचकर, कब तक जश्न मनाओगे (हिंदी गजल)
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1)
पुरखों की संपत्ति बेचकर, कब तक जश्न मनाओगे
एक दिवस आएगा खाली, भीतर से हो जाओगे
2)
मिले बाप-दादा से धन की, समझ न पाओगे कीमत
दॉंतों से पकड़ोगे तब ही, जब तुम स्वयं कमाओगे
3)
दुनिया क्या कहती है इस पर, ज्यादा चिंता मत करना
दुनिया कमी निकालेगी ही, जो भी कदम उठाओगे
4)
खर्च अनावश्यक कम कर लो, भरो सादगी जीवन में
शांति और सुख सच्चा तब ही, भीतर तक पहुॅंचाओगे
5)
नकली चमक-दमक से शायद, भरमा लोगे दुनिया को
लेकिन सच्ची शांति हृदय में, बोलो कैसे लाओगे
6)
जग के सारे रिश्ते झूठे, बनते और बिगड़ते हैं
केवल मॉं की लोरी में ही, सच्ची ममता पाओगे
7)
अपना सब कुछ छोड़-छाड़ जो, बेटों को दे जाता है
मूल्य पिता का अगर न समझे, जीवन-भर पछताओगे
8)
सात जन्म का रिश्ता है यह, दो दिन की संविदा नहीं
पाणि-ग्रहण का मतलब है यह, सातों जन्म निभाओगे
9)
नए कर्ज से माना तुमने, किया पुराना ऋण चुकता
लेकिन प्रश्न यही है ऐसा, कब तक चक्र चलाओगे
10)
ओ! कॅंदले के आभूषण तुम, सोने-से दिखते तो हो
हुई जॉंच जिस दिन लज्जा से, सिर फिर कहॉं छुपाओगे
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451