पुरखों की निशानी बेच देते हैं
महज सिक्कों में अपनी ज़िंदगानी बेच देते हैं
नयी मिल जाए तो चीजें पुरानी बेच देते हैं
तड़पता प्यास से व्याकुल जो कोई आये चौखट पर
तो भरकर बोतलों में लोग पानी बेच देते हैं
मेरे दुःख,दर्द की बातों को लिखकर के किताबों में
वो अपने नाम से मेरी कहानी बेच देते हैं
फंसे लालच के पंजे में या है फिर कोई मज़बूरी
ना जाने लोग क्यों लड़की सयानी बेच देते हैं
जिन्हे दो जून की रोटी मयस्सर हो नही पाती
नशे के वास्ते अपनी जवानी बेच देते हैं
जो लायक हैं नमन करते हैं पुरखों की अमानत को
हैं जो खुदगर्ज पुरखों की निशानी बेच देते हैं