पुनीत /लीला (गोपी) / गुपाल छंद (सउदाहरण)
पुनीत /लीला (गोपी) / गुपाल छंद (विधान – सउदाहरण ,
पुनीत छंद (मात्रिक छंद)
15 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं। पर चारों चरण का तुकांत मनोहारी होता है , बैसे कुछ विद्वान सिर्फ़ अंत में गागाल मानते है पर
इसकी सही मात्रा मापनी निम्न है-
चौकल +छक्कल + तगण (गुरु गुरु लघु) = 15 मात्राएं ।
(चौकल में -2-2. ,211. ,1111 या 112 हो सकता है,
छक्कल में – 2 2 2, 2 4, 4 2, 3 3 हो सकता है।)
लोगों का देखा व्योहार |
मतलब का मतलब से प्यार ||
चलता यहाँ आर से पार |
मतलब छूटे तब है खार ||
धोखे से मिलता है ताज |
करते जनता पर तब राज ||
जिनकी नजर बनी है बाज |
उनको कब आती है लाज ||
उनकी मिली जुली है ताल |
बनते है वह माला माल ||
जनता रहे बजाती गाल |
उनकी पौ- बारह है चाल ||
खाने में पूरे लंगूर |
चुगते जनता का अंगूर ||
रहते निकट नहीं है दूर |
शोषण करके वह है शूर ||
सुभाष सिंघई
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पुनीत छंद (मात्रिक छंद)
मुक्तक
जनता गूँज रही आबाज |
रखना सुंदर अब है राज |
सुनकर जाति-पात के भेद –
आती सबको अब है लाज |
रखना भारत माँ की शान |
गाना जन गण मन का गान |
दुनिया जब खोजेगी नूर –
बनना प्रखर रश्मि के भान |
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पुनीत छंद (मात्रिक छंद) गीतिका
समांत आना , पगांत यार
चलते जाना गाना यार |
भारत वतन बताना यार |
माटी यहाँ सुहानी नूर ,
सोंधी खुश्बू पाना यार |
सूरज चंदा माने पूज्य ,
इनसे प्रेम सुहाना यार |
पावन गंगा यमुना वेग ,
इनसे नेह निभाना यार |
साहस रखकर चलना चाल ,
दुश्मन शीश झुकाना यार |
भारत नहीं झुका है शीष ,
है इतिहास पुराना यार |
संस्कृति रखती उजला रूप ,
मेरा देश खजाना यार |
सुभाष सिंघई
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#लीला छंद (गोपी)(15 मात्रिक )
प्रारंभ क्रमशा: त्रिकल द्विकल से , चरणांत दीर्घ
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लीला छंद
अकल के दुश्मन मिल जाते |
ज्ञान भी अपना बतलाते ||
बोल भी मद का रहता है |
निजी स्वर सबसे कहता है ||
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लीला(गोपी) छंद (15 मात्रिक )
प्रारंभ त्रिकल द्विकल से , चरणांत दीर्घ
( मुक्तक)
मनुज है अब बड़ा सयाना |
चाहता सब कुछ वह पाना |
पराया माल झटकने में ~
घूमता बनकर दीवाना |
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#लीला छंद (गोपी छंद )(15 मात्रिक ) √√
प्रारंभ त्रिकल द्विकल से , चरणांत दीर्घ
गीतिका , स्वर यैर , पदांत – नहीं है
झूँठ का सिर पैर नहीं है |
देखता कुछ खैर नहीं है |
रखें वह हमसे कुछ दूरी
जबकि कुछ भी बैर नहीं है |
अजब दास्ता सुनने मिलती ,
कहे मेरा मैर नहीं है |
मानते हम फिर भी अपना
जान लो वह गैर नहीं है |
सुभाषा किससे क्या कहना ,
हमारा उनसे कैर नहीं है |
कैर = शत्रुता , बिना पत्ती का कंटीला पेड़
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गुपाल छंद (15 मात्रिक )
चरणांत लगाल (जगण ) होने पर-गुपाल छंद
आगे खोजो सदा प्रकाश |
अंधकार का करो विनाश ||
यश फैलाओ बड़े सुदूर |
साहस रखना तुम भरपूर ||
जग में वही लोग मजबूर |
नहीं जानते जो निज नूर ||
रहता उनसे यश भी दूर |
बने रहें जो मुँह से शूर ||
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गुपाल छंद (15 मात्रिक )
चरणांत लगाल (जगण ) मुक्तक
जग में रहते सदा अनाथ |
रहें ठोकते अपना माथ |
बने आलसी करें न कर्म –
बाँधे रहते जो निज हाथ |
कहता सच्ची बात सुभाष |
उनको मिलता सदा प्रकाश |
रहते है जो साहसवान –
उनके घर हो सुंदर प्राश |
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गुपाल छंद (15 मात्रिक )
चरणांत लगाल (जगण ) गीतिका
आओ मिलकर करें प्रभात |
निज जीवन में भरें प्रभात |
कर्म हीन की करो न बात ,
वह तो निज का हरें प्रभात |
लगन जहाँ है सुंदर नूर ,
उनके घर यश धरें प्रभात |
आदर्शों को रखो उदार ,
नित नूतन तब झरें प्रभात |
करें मधुरता का सुख गान ,
उनके कदमों बहें प्रभात |
©®सुभाष_सिंघई , जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०