पुनर्जन्म
आज भी याद है
वो पल मुझको…
अपनी कोख से जब
जाया था तुझको…
उस वक्त
केवल तू नहीं जन्मी थी…
जन्म हुआ था
एक माँ का भी…
दर असल
मेरा पुनर्जन्म था वो…
रात भर की असहनीय पीड़ा
पर
भारी था तेरे दीदार का इंतज़ार…
तेरी पहली किलकारी के साथ
अपने पूर्ण होने का एहसास
हुआ था उसी पल पहली बार…
गुलाबी मलमल में लिपटी
मक्खन सी
तेरी मखमली काया…
परिचारिका ने तुझे
मेरी बगल में लिटाया…
सम्पर्क में आते ही
तूने मेरी कनिष्ठा उंगली को
मद्धम सा दबाया…
सच उसी वक्त तूने
मेरे अंतस को पिघलाया…
वो तरल आज भी
मेरे हृदय में तरंगित हो
हिलोरें मारता है…
तेरी वो पहली छुवन
आज भी उतनी ही
मादक और ताजा है…
जब भी तुझे सोचती हूँ
वो ही
नैसर्गिक आनंद आता है…
आज भी याद है
वो पल मुझको…
अपनी कोख से जब
जाया था तुझको…
उस वक्त
केवल तू नहीं जन्मी थी…
जन्म हुआ था
एक माँ का भी…
दर असल
मेरा पुनर्जन्म था वो…