पुनर्जन्म
मैं जो हूँ पुनर्जन्म लेता नहीं,
जो कुछ भी लिखता हूँ वो सब करता नहीं।
शोषण होते देख काश! मुँह फेरता नहीं,
हां, मैं जो हूँ कुछ करता नहीं।
उस बेचारे को बिलखता देख काश! चुप होता नहीं,
हां, मैं जो हूँ पलट कर रुकता नहीं।
दकियानूसी ख्यालों का जवाब काश! मैं देता वहीं,
हां, मैं जो हूँ सामने कुछ करता नहीं।
उफ़! वह गिड़गिड़ाहट, काश! सुन बढ़ता नहीं,
हां, आप सही हो, मैं कुछ भी करता नहीं।
चेहरे की वह हालत देख काश! मैं मुड़ता नहीं,
उस वक्त कुछ कर सकता था, लेकिन मैं जो हूँ, कुछ करता नहीं।
उस रोते हुए बच्चे को देख काश! मैं पूछता वहीं,
‘कुछ चाहिए था दोस्त’, पर मैं जो हूँ कुछ करता नहीं।
हुकूमत के तानाशाही पर काश! मैं अंधा बनता नहीं,
दरअसल, विरोध मन में रहकर भी, मैं कुछ करता नहीं।
दहकती दीवारों को कोई क्यों बुझाता नहीं,
यहाँ क्या पढ़ रहे हो आप, मैं तो कुछ भी करता नहीं।
काश! अपने सवालों का जवाब दे सकता अभी
काश! पुनर्जन्म ले सकता, तो जीकर भी मरता नहीं।