पुनर्जन्म का नव संबंध
ऐसा भी हो सकता है
बिल्कुल हो सकता है
और यकीनन होता ही है।
हमें खुद इसका अहसास भी होता है
जीवन का कोई भी पहर हो
जाति, धर्म, उम्र या लिंग कुछ हो
बोध करा ही देता है हमें
पूर्वजन्म के आत्मिक संबंधों का
और जगा देता है भाव उसके साथ रिश्तों का।
जाने कितने जन्मों बाद जोड़ देता है हमें उससे
जिसे हम आप जानते पहचानते तक नहीं
कभी मिले तक नहीं, शायद मिलेंगे भी नहीं
न नाम का पता,न शक्ल सूरत का कोई चित्र
न दूर दर तक कोई रिश्ता, न कोई संपर्क- संबंध।
फिर भी अपनत्व का भाव अंकुरित हो जाता है
और बन जाता है एक रिश्ता
जिसे हम आप निभाते हैं बड़ी शिद्दत से
और अटूट विश्वास करने लगते हैं
पिछले किसी जन्म के रिश्ते से जोड़
संपूर्ण विश्वास के साथ निभाने लगी जाते हैं
इस जन्म में भी पूर्व जन्म की तरह
और बहाना होता है सीधा साधा सरल सा।
जिसे मानने लगते हैं हम सब
इसे पूर्वजन्मों का संबंध।
जब हो जाता है इस जीवन में
हमारा उस अंजाने से ऐसा कोई नव अनुबंध,
और प्रगाढ़ होता जाता है हर पल ये प्रबंध
जिसमें नहीं होता है कोई द्वंद।
शायद इसीलिए ऐसे रिश्तों को कहते हैं हम
पिछले जन्मों का है ये अटूट संबंध,
जो इस जन्म में पुनः अंकुरित हो फलने फूलने लगा है
हमारे रिश्तों का ये नव अनुबंध।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश