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24 Mar 2021 · 1 min read

पुटभेद छंद “बसंत-छटा”

छा गये ऋतुराज बसंत बड़े मन-भावने।
दृश्य आज लगे अति मोहक नैन सुहावने।
आम्र-कुंज हरे चित, बौर लदी हर डाल है।
कोयली मधु राग सुने मन होत रसाल है।।

रक्त-पुष्प लदी टहनी सब आज पलास की।
सूचना जिमि देवत आवन की मधुमास की।।
चाव से परिपूर्ण छटा मनमोहक फाग की।
चंग थाप कहीं पर, गूँज कहीं रस राग की।।

ठंड से भरपूर अभी तक मोहक रात है।
शीत से सित ये पुरवा सिहरावत गात है।।
प्रेम-चाह जगा कर व्याकुल ये उसको करे।
दूर प्रीतम से रह आह भयावह जो भरे।।

काम के सर से लगते सब घायल आज हैं।
देखिये जिस और वहाँ पर ये मधु साज हैं।।
की प्रदान नवीन उमंग तरंग बसंत ने।
दे दिये नव भाव उछाव सभी ऋतु-कंत ने।।
==================
लक्षण छंद:-

“राससाससुलाग” सुछंद रचें अति पावनी।
वर्ण सप्त दशी ‘पुटभेद’ बड़ी मन भावनी।।

“राससाससुलाग” = रगण सगण सगण सगण सगण लघु गुरु।

(212 112 112 112 112 1 2)
17 वर्ण प्रति चरण,
4 चरण,2-2 चरण समतुकान्त।
*****************

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया

Language: Hindi
1 Like · 6 Comments · 301 Views
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