पुकारती माँ भारती
शेष से विशेष तक, रक्त के अवशेष तक।
पुकारती मां भारती, देश से विदेश तक।।
स्नेह से आवेश तक, द्वंद से क्लेश तक।
शब्द से परिवेश तक, मूल से अभिषेक तक।।
देखती मां भारती, प्रेम से आवेश तक।
कल से क्लेश तक, गर्व के प्रवेश तक।।
द्वंद जो है चल रहा, फोड के निकाल ले।
मांग ले तू मांग ले, हिंदू राष्ट्र मांग ले।।
समय अभी स्पष्ट है, किसी को ना कष्ट है।
नष्ट कर तू नष्ट कर, दुश्मनों को नष्ट कर।।
आगे बढ़ उद्धार कर, राष्ट्र नव निर्माण कर।
जात पात छोड़कर, केसरी तू ओड़ कर।।
रक्त में आवेश भर, क्रोध कर तू क्रोध कर।
बढ़ाके अपने कदमों को, रोध कर विरोध कर।।
बैठकों में बैठकर और, दर्द को सहन कर।
धैर्य को छोड़कर, अपना हक वहन कर।।
मोल है अनमोल तू, लगाले अपना मोल तू।
स्वार्थ को त्याग तू, धर्मध्वजा उठाले तू।।
युद्ध का परिवेश हो, धैर्य का निवेश हो।
शांति का पाठ हो, या शंख महानाद हो।।
विक्रम महान से और, चंद्रगुप्त महान तक।
राणा स्वाभिमान से, अटल पहचान तक।।
ब्राह्मणों के तेज से, क्षत्रियों के वेग तक।
वैश्यों के दान से, शूद्र अभिमान तक।।
एक लक्ष्य एक राष्ट्र, नहीं होगी कोई बात।
एकता मे बल दिखा, दुश्मनों को अब बता।।
एक लक्ष्य साध कर, कफन सर पे बांध कर।
धैर्य से विवेक से, लक्ष्य को तू साध कर।।
ललकार है पुकारता, राष्ट्र को सवारता।
अभी अगर लड़े नहीं, विरोध में खड़े नहीं।।
दुश्मनों की भीड़ में, अपने भी गद्दार हैं।
छुरा है उनके हाथ में, वो तो तैयार हैं।।
दर्द जो है पल रहा, पालके निकाल ले।
मांग ले तू मांग ले, हिंदू राष्ट्र मांग ले।।
ममता की कोख में, भविष्य मेरे राष्ट्र का।
जीजा बाई बनके तुम, छत्रपति पाल लो।।
मौन अब है बोलता, रक्त अब है खोलता।
राष्ट्रहित सर्वोपरि, ललकार इतना बोलता।।
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“ललकार भारद्वाज”