पीड़ा कैसे समाप्त होती है।
पीड़ा कैसे समाप्त होती है,
समय के साथ साथ,
मन वृछ पर लगा वह पत्ता,
जिस पर पीड़ा अंकित थी,
शनैः शनैः सूख कर,
पीत वर्ण धारण कर ,
स्मृति की धरा में,
आलोपित हो जाता है,
या की पीड़ा कभी समाप्त ही नहीं होती,
समय के साथ साथ ,
मन वृछ पर लगा वह पत्ता,
जिस पर पीड़ा अंकित थी,
शनैः शैनः सूख कर,
हरित हीन होकर,
बेल वृछ के शूल में,
परिवर्तित होकर,
आजीवन स्मृति में ,
समाहित हो जाता है,
मुझे पता नहीं,
मुझे मेरी पीड़ा,
किस घाट उतारेगी,
पर जहां भी ले जाना हो,
यही प्रार्थना है,
शीघ्रता करे,
त्वरा दिखाए,
अब औऱ इस स्थिति में,
मुझे न जिलाये।