‘पीड़ा’ अबोध की …
उस अबोध को ज्ञात न था,
यह हो क्या रहा झमेला है ?
निद्रा टूटी चकित रह गया, देख !
घर में लगा जो मेला है ।।
उलझन उसके मन की,
जब कुछ और उलझ रही थी,
देख झगड़ा मात-पिता का ।
उसकी पीड़ा बढ़ रही थी ।।
सहसा उसके समक्ष,
प्रश्न एक प्रस्तुत हुआ,
कर ले चुनाव तू मात-पिता का,
किसके पक्ष में तू है खड़ा ?
इस हृदय विदारक प्रश्न सुन,
अचंभित वह मौन रहा,
दोनों ही उसे जान से प्यारे,
हाय ! विधाता ने क्या दृश्य रचा ?
पिता के कंधे पर झूला,
माता के आँचल में पला-बढ़ा,
आधुनिकता की इस चकाचौंध ने,
दोनों को है अंधा किया !
रोते और बिलखते वह,
पिता से अपने अलग हुआ,
माता के संग चल-पड़ा,
बच्चा बिल्कुल निष्प्राण-सा !
विडम्बना देखिये दोस्तों, आधुनिक युग की ………………..
बिखर गया है, भविष्य उसका,
बिखरा वह परिवार है,
परिस्थितियाँ इतनी जटिल हुई कि,
प्रेम विलुप्त यह संसार है … (2)
जरा सोचिए दोस्तों ………………
सोचिए उन बालकों की,
क्या स्थिति होगी,
जिनके समक्ष भी,
ऐसी ही एक परिस्थिति होगी ?
~ज्योति