पीहर आने के बाद
कितने भी बड़े क्यों हो जाएं,
ससुराल से पीहर आने के बाद,
मन बचपन हो ही जाता है,
कभी मां की गोदी में सर रख सोना,
कभी भाई से बहस कर लड़ना
लड़कपन की यादों को ताजा करना,
बड़ा ही सुहाना लगता है,
जिम्मेदारी से बंधा मन,
मां के घर आजादी पाता है ,
घर के हर कोने में मन
बगैर बात घूमना रहता है,
सुबह थोड़ी देर तक सोना,
रात सबके संग गप्पे हांकना,
भाभी संग मन की बातें करना,
कितना अच्छा लगता है,
पीहर की संकरी गलियां,
बाजार का वो रास्ता,
आज भी पुरानी यादों में भिगो देता है,
वहां के मंदिरों में भक्ति रंग मन में बसता है,
पीहर आने के बाद मन एक बच्ची को जिंदा रखता है।
– सीमा गुप्ता