पीला पड़ा लाल तरबूज़ / (गर्मी का गीत)
पीला पड़ा
लाल तरबूज़ ।
रार पिघलती
है ढोलक की,
लपट खा गई
है सारंगी ।
नीबू भीतर
सब रस सूखा,
कुम्हला गई
कली-नारंगी ।
तार गए
वीणा के सूज ।
पीला पड़ा
लाल तरबूज़ ।
थाप कसैली
है तबले की,
हारमोनियम
के सुर फीके ।
दाड़िम,आम
मुसब्बी,केला
मधुर फलों के
सब रस तीखे ।
मुरली की
है टेर अबूझ ।
पीला पड़ा
लाल तरबूज़ ।
मौन मजीरा,
झूला कर्कश,
इकतारे के
तार गर्म हैं ।
फल-रस सूखा,
स्वर-रस फीका,
गर्मी भी
बेबूझ मर्म है ।
भाप उगलता
है खरबूज़ ।
पीला पड़ा
लाल तरबूज़ ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।