#पीरियड_लीव
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पीरियड-लीव (कहानी)
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“मुझे आज पीरियड हो गया “-निहारिका ने दीपांकर को बताया ।
“अरे वाह ! तब तो आज से तीन दिन के लिए तुम्हारी पीरियड-लीव शुरू हो गई ।”
“क्या मतलब ? “-निहारिका की कुछ समझ में नहीं आया।
” मतलब यह है कि अब तुम्हें तीन दिन के लिए गृह कार्य से अवकाश रहेगा । सिर्फ आराम करोगी ।”-दीपांकर ने खुशी से भर कर कहा ।
हुआ यह कि कई दिन से दीपांकर यह पूछ रहा था कि निहारिका को पीरियड कब से होने वाला है ? निहारिका की समझ में कुछ नहीं आया कि यह नई जांच-पड़ताल दीपांकर ने क्यों शुरू कर दी ? दोनों की शादी को चार साल हो चुके थे । छोटा सा फ्लैट है । दीपांकर जॉब करता है। निहारिका यद्यपि ग्रेजुएट है ,लेकिन सामान्य ग्रहणी के तौर पर घर की जिम्मेदारी ही मुख्य रूप से संभालती है ।आखिर यह भी कोई छोटा काम नहीं होता । तीन साल का एक लड़का है । उसके ऊपर हर समय निगरानी भी रखनी पड़ती है । खेल में मन भी लगाना पड़ता है और जब से लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हो चुके हैं तब तो सारी पढ़ाई भी घर पर ही करानी पड़ती है ।
“मेरी समझ में गृह कार्य से अवकाश की बात नहीं आई ! साफ-साफ बताओ । पीरियड से तो मैं हमेशा से होती रही हूँ । अब नई बात क्या हो गई ? ”
“देखो ! जब जागे ,तभी सवेरा । मेरे मन में यह विचार आया कि महिलाओं को पीरियड के दिनों में शारीरिक और मानसिक स्तर पर अत्यंत कष्ट से गुजरना पड़ता है । ऐसे में उन्हें आराम की जरूरत है । तो मैंने सोचा कि जब तुम्हें पीरियड हों तब घर के कामों से तुम्हें छुट्टी दे दी जाए ।”
“अच्छा ! तीन दिन की छुट्टी और चौथे दिन काम का ढेर मेरे सिर पर आ जाएगा ?”- निहारिका को दीपांकर की बात सुनकर झुंझलाहट होने लगी । “फिर खाना तो रोज ही बनाना होगा ? क्या वह तुम बना लोगे ? ”
“यही तो मैं कहना चाहता हूँ। तुम आराम करो । मैं खाने का इंतजाम कर लूंगा। चाय तुम्हें पलंग पर बैठे-बैठे मिलेगी। कपड़े धोने के लिए मशीन है । उसका उपयोग मैं करूंगा । उसे मैं चला लूंगा। झाड़ू पोछा तीन दिन के लिए सारा काम मेरे जिम्में।”
निहारिका दीपांकर की बात सुनकर हंस पड़ी । कहने लगी “तुम्हें भला पीरियड के बारे में इतनी जानकारी कैसे हो गई ? पहले तो कभी कुछ नहीं बोले ? ”
“देखो जानकारी तो आजकल आसानी से इंटरनेट पर भी उपलब्ध हो जाती है और फिर जहां चाह है, वहाँ राह है । तुम स्त्रियों की दिक्कतों को हम पुरुषों को समझना चाहिए । तभी तो जीवन में संतुलन और आनंद उत्पन्न होगा। यह जो पीरियड अर्थात मासिक-चक्र है वह एक प्राकृतिक कार्य है जिसके प्रति आत्मीयता से सबको व्यवहार करना चाहिए”
निहारिका की आंखों में आँसू आ गए। दीपांकर यह देख कर आश्चर्यचकित हो उठा। कहने लगा -“तुम रो रही हो ? क्यों, क्या बात हो गई ? ”
निहारिका ने आगे बढ़कर दीपांकर को गले से लगा लिया । अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया और बोली “मैं कितनी खुश-किस्मत हूं जो मेरी दिक्कतों को समझने वाला पति मुझे मिला है ।”
फिर दोनों सोफे पर जाकर बैठ गए। निहारिका ने थोड़ा शांत होने के बाद दीपांकर से कहा “पीरियड में जो परेशानियाँ होती हैं ,वह अनेक बार अनेक स्त्रियों को बहुत ज्यादा भी होती हैं। हालांकि अब पुराने और संक्रमित कपड़ों का प्रयोग समझदार स्त्रियाँ नहीं करतीं। बाजार में अच्छे पैड मिलते हैं । अगर थोड़े-थोड़े समय पर उन्हें बदला जाता रहे तो कोई दिक्कत नहीं आती।” फिर निहारिका ने दीपांकर के हाथ को अपने हाथ में रखा और प्यार से भर कर आगे कहने लगी “तुम्हारे अपनेपन के लिए धन्यवाद कहने को मेरे पास शब्द नहीं हैं। लेकिन मैं पीरियड-लीव नहीं लूंगी । बस हां ! हर महीने तुम्हें बता दिया करूंगी और तुम मेरा थोड़ा ख्याल रख लिया करो । मुझ पर उन तीन दिनों के लिए कोई हुक्म न चलाओ।”
“तो क्या मैं तुम्हारे ऊपर हुक्म चलाता हूँ ? हे भगवान ! कितना बड़ा आरोप तुम मुझ पर लगा रही हो ? “-दीपांकर के इतना कहते ही निहारिका और दीपांकर दोनों खिलखिला कर हँस उठे । फ्लेट में अपनेपन की खुशबू महक उठी ।
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451