पीरियड्स

आज रीना बहुत खुश थी,अब उन दिनों शर्मिंदगी महसूस नही होगी। आज उसके स्कूल में एक मशीन लग गयी है। जिसमे महज 5 रुपये का सिक्का डाल कर खुद सेनिटरी पैड निकाल सकेगी। साथ ही इस्तेमाल की हुई पैड को भी सबकी नजरों से छुपा कर फेंकने की जिल्लत नही होगी। इसके लिए भी इंसीनरेटर लग गया है। जिसमें इस्तेमाल की हुई पैड को बड़ी आसानी से डिस्ट्रॉय कर लेगी।

रीना को आज भी याद है दस ग्यारह साल की उम्र रही होगी। स्कूल में अचानक से पेट मे बहुत जोरों की दर्द होने लगी थी। वह पेट पकड़ कर स्कूल में ही बैठ गयी। छुट्टी हुई तो बस्ता लेकर सभी सहेलियों के साथ क्लास रूम से निकल गयी। उसके पीछे स्कूल के सीनियर लड़के और लड़कियां हँस रही थी। वह समझ भी नही पा रही कि आखिर माजरा क्या है। आखिर पीछे क्या लगा है जो लोग देखकर हँस रहे है। रीना ने पीछे मुड़कर देखने की कोशिश की तो एकदम से डर गई।
अरे! ये क्या हुआ? पूरी ड्रेस लाल रंग से लगी हुई थी। कहां चोट लगी जो इतना खून निकला! वह जल्दी जल्दी भागकर घर पहुंची। पेट मे अब भी दर्द हो रहा था। घर पहुंच कर वह सीधे मां के पास गयी तो वहां दादी भी बैठी थी।

“मां देखो न मेरे ड्रेस में क्या लगा है और पेट मे बहुत दर्द हो रहा है! ”
उसकी बात सुनकर माँ हँसने लगी और कहा “कुछ नही जाकर बाथरूम में कपड़ा बदल लो”।
“अरे!ध्यान रखना वहां मेरे ठाकुर जी का वस्त्र रखा है उसे हाथ भी नही लगाना!अपवित्र हो जाएंगे” दादी ने बड़े रौब से फरमान झाड़ दिया।
“क्यूँ दादी? सुबह मैंने ही तो ठाकुर जी के वस्त्रों को धोया था! अब मेरे छूने से अपवित्र कैसे हो जाएंगे” रीना ने बड़ी मासूमियत से पूछा।
“तुम्हे जितना बोला है चुपचाप करो!बहुत जुबान लड़ाने लगी है।”दादी माँ ने आंखे तरेर कर कहा तो
रीना रोती हुई बाथरूम की ओर भाग गई।
बाथरूम में जब कपड़े बदले तो रीना के होश उड़ गए। पूरी स्कर्ट खून से रँगी थी लेकिन चोट का कहीं निशान नही था। आखिर उसे हुआ क्या है?
बेटी! ये लो कपड़ा! माँ ने पुराने कपड़ों की एक पट्टी हाथ मे पकड़ा दी और कहा” इसे पहन लो”
रीना बिल्कुल अवाक सी थी उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था माँ ने जैसा कहा चुपचाप कर लिया।
“और हाँ ! अब चार पांच दिनों तक तुम स्कूल नही जाना। मन्दिर और रसोई में भूलकर भी कदम नही रखना। चुपचाप अपने कमरे में रहना। जब बोलूं तभी तुम स्कूल जाना नहीं तो ठाकुर जी नाराज हो जाएंगे। “मां ने दादी का फरमान दोहरा दिया।
रीना को कुछ समझ नही आ रहा था कि आखिर उसके साथ हुआ क्या है। कोई कुछ बता नही रहा है और हर काम के लिए रोक दिया गया है। वह चुपचाप अपने कमरे में जाकर लेट गयी। पेट का दर्द अबतक ठीक नही हुआ था। बदन भी टूट रहा था। कब नींद आ गयी पता ही नही चला।

सुबह माँ ने जल्दी उठा दिया और कपड़े को बाहर झाड़ी में फेंकने को कहा। फिर उसी तरह की कपड़े की एक और पट्टी पहना दी।
“मां! ये खून कैसे निकल रहा है। पेट मे घाव हुआ है क्या?”
रीना ने मां से सवालों की बौछार कर दी।
“अरे!कुछ नही ! बाज़ार में कुछ उल्टा सीधा खाया होगा इसलिए पेट मे जख्म हो गया है दो तीन रोज में ठीक हो जायेगा।” मां ने डांटते हुए कहा।
सुबह सोनी स्कूल जाने के लिए बुलाने आयी तो माँ ने उसे वापस भेज दिया ये कहकर की रीना बीमार है।
ये सिलसिला चार दिनों तक चलता रहा। अब दर्द कम हो गया था और खून भी आना बंद हो गया था।
अगले दिन रीना पहले की तरह ही स्कूल गयी तो सभी सहेलियों ने उसे घेर लिया “तुम स्कूल क्यों नही आ रही थी? बीमार थी क्या?”
“हाँ!” कहकर रीना क्लासरूम में चली गयी। लेकिन उसके अंदर अब भी प्रश्नों का सैलाब उमड़ रहा था।
धीरे धीरे इन घटना को बिल्कुल भूल गयी लेकिन करीब एक महीने बाद फिर वही घटना घटी तो रीना डर गई।” इसबार तो कुछ ऐसा वैसा खाया नही तो फिर पेट में दर्द और खून क्यों आ रहा है? रीना ने घर आकर सबसे पहले मां से यही सवाल किया।
“अरे!कुछ नही बेटी ! ऐसा होता है।अब तुम बड़ी हो रही हो और महीने में कुछ दिन ऐसा ही होता है। जैसा पिछले माह किया था ठीक वैसे ही रहो। ” मां ने इसबार बड़े प्यार से समझाया। अब रीना को भी समझ आ रहा था कि उसकी मां भी तो महीने में तीन चार रोज बीमार सी रहती है तब पूजा पाठ नही करती। उन दिनों दादी ही खाना बनाती है।
स्कूल पास कर रीना पढ़ने के लिए शहर आ गयी। आवासीय विद्यालय के हॉस्टल में रहने लगी। अब उसे उनदिनों की समस्या समझ मे आ गयी थी। हॉस्टल में फिर वही समस्या शुरू हो गयी तो मां के बताये अनुसार कपड़े की तह कर पहनने लगी।
“अरे! रे! ये क्या कर रही हो । स्टुपिड!तुम गांव की गंवार ही ठहरी। ये लो इसे पहनो। “शिल्पा ने अपने बैग से निकाल कर विस्पर का पैकेट पकड़ा दिया।
“ये क्या है? “रीना पहली बार इस तरह के पैड को देख रही थी.
“वही है जो तुम कपड़े का तह ले रही थी।”शिल्पा ने शरारत भरी नजरों से कहा।
“लेकिन इसके लिए पैसा क्यों बर्बाद करना जब कपड़े से काम चल जाय” रीना ने मासूमियत से कहा।
“अरे! यार, तुम भी न। कपड़े से इंफेक्शन हो सकता है और फिर सूखता भी नही। ले पहन इसे ।ज्यादा सवाल मत कर।” शिल्पा ने जबरन पैकेट हाथों में थमा दिया।
आज रीना को बहुत आराम लगा। कपड़े सी असहजता नही थी।
“अच्छा शिल्पा! एक बात बता! इन दिनों लड़कियों को पूजा घर या रसोई में क्यूँ नही जाने दिया जाता है और स्कूल भी जाने से मां मना कर देती थी। क्या लडकियां अपवित्र हो जाती है?” रीना ने भोलेपन से पूछा तो शिल्पा ठठाकर हंस पड़ी।
“अरे यार! ये सब पुरानी बातें है। अरे! ये तो शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसका होना उतना ही जरूरी जितना कि सांस लेना और यही तो एकमात्र चीज है जो हम लड़कियों को अलग बनाती है। हम संसार का सृजन कर सकते हैं। एक बच्चे को जन्म देते हैं। दरअसल मासिकधर्म के दिनों शरीर को बहुत आराम की जरूरत होती है शायद यही वजह है कि लोगों से इसे शुद्धता से जोड़ दिया है ताकि शरीर को अधिक से अधिक आराम मिल सके।”
‘आखिर ये होता क्यूँ है शिल्पा? रीना की जिज्ञासा बढ़ने लगी थी
“ज्यादातर महिलाएं माहवारी या पीरियड्स की समस्याओं से परेशान रहती है लेकिन अज्ञानतावश या फिर शर्म या झिझक के कारण लगातार इस मुश्किलों से जूझती है। दरअसल दस से पन्द्रह साल की लड़की का अण्डाशय हर महीने एक परिपक्व अण्डा या अण्डाणु पैदा करने लगता है। वह अण्डा डिम्बवाही थैली या फेलोपियन ट्यूब में सफर करता है। जब अण्डा गर्भाशय में पहुंचता है तो रक्त और तरल पदार्थ से मिलकर उसका स्तर गाढ़ा होने लगता है। यह तभी होता है जब कि अण्डा उपजाऊ हो, वह बढ़ता है, अस्तर के अन्दर विकसित होकर बच्चा बन जाता है। गाढ़ा अस्तर उतर जाता है और वह माहवारी का रूधिर स्राव बन जाता है, जो कि योनि द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है। जिस दौरान रूधिर स्राव होता रहता है उसे माहवारी अवधि या पीरियड कहते हैं। औरत के प्रजनन अंगों में होने वाले बदलावों के आवर्तन चक्र को माहवारी चक्र या मेंस्ट्रुअल साइकल कहते हैं। यह हॉरमोन तन्त्र के नियन्त्रण में रहता है एवं प्रजनन के लिए जरूरी है। माहवारी चक्र की गिनती रक्त स्राव के पहले दिन से की जाती है क्योंकि इसका हॉरमोन चक्र से घनिष्ट तालमेल रहता है। माहवारी का खून स्राव हर महीने में एक बार 28 से 32 दिनों के अन्तराल पर होता है. ये पीरियड हम लड़कियों को पूर्ण औरत बनाती है।”
शिल्पा अपनी सारी पढ़ाई रीना के दिमाग मे उतार देना चाहती थी।
रीना को भी इसे समझने में मज़ा आने लगा था उसने सवालों की बौछार शुरू कर दी-अच्छा तो फिर इतना दर्द क्यों होता है?
एक्चुअली में जब डिम्ब का अस्तर उतरता है उससे दर्द होता है। पीरियड्स में निचले उदर में ऐंठनभरी पीड़ा होती है। किसी औरत को तेज दर्द हो सकता है जो आता और जाता है या मन्द चुभने वाला दर्द हो सकता है। इन से पीठ में दर्द हो सकता है। दर्द कई दिन पहले भी शुरू हो सकता है और माहवारी के एकदम पहले भी हो सकता है। माहवारी का रक्त स्राव कम होते ही सामान्यतः यह खत्म हो जाता है। इसमे घबराने की आवश्यकता नही है। बस आराम की जरूरत है।”समझ गयी।
“तुम शायद ठीक ही कहती हो।मैं इसबार घर जाकर मां और दादी को इस विषय मे बढ़िया से बताउंगी। साथ ही मां के लिए भी बाजार से बढ़िया पैड ले जाउंगी। कपड़े से कितना इंफेक्शन होता है न। ” रीना मानो आज ही जाकर मां को समझा देना चाहती थी।
अगली बार उसे फिर जरूरत हुई लेकिन शिल्पा तो छुट्टी में घर गई थी। अब क्या करे समझ मे नही आ रहा था।
उसने शहर में आते जाते उसने बड़े बड़े होर्डिंग्स में विश्पर का विज्ञापन देखा था लेकिन दुकान जाकर खरीदने में बड़ी शर्म आ रही थी।
बहुत हिम्मत कर एक दुकान गयी वहां बहुत सारे तरह तरह के पैड भी थे लेकिन दुकान में पुरुष होने के कारण मांगने कक हिम्मत नही हुई। कई दुकान भटकती रही आखिर एक लेडीज स्टोर मिल गयी जिसके काउंटर पर एक लड़की थी।
“मुझे ये वाला चाहिए” बड़ी झिझक से रीना ने विस्पर के पैकेट की तरफ उंगली बढ़ाकर कहा।
“ओके” कहकर महिला ने पैकेट को पहले अखबार में लपेटा फिर काले रंग की पॉलीथिन में डालकर लगभग छुपाते हुए दिया।

रीना को भी लगा कि जैसे चोरी का सामान खरीद रही है। चुपचाप पर्स में डालकर भागती हुई हॉस्टल पहुंची। उसकी सांसे फूल रही थी और दिल धौंकनी से धड़क रहा था।
“उफ्फ! कितनी प्रॉब्लम है! ये हम लड़कियों के साथ। हर महीने इतनी दर्द और तकलीफ से गुजरना पड़ता है और पैड भी आसानी से नही मिलता। लड़के तो ऐसे घूर के देखते है जैसे ड्रग खरीद रही हो।” रीना मन ही मन भुनभुना रही थी।
“अरे!कहां खो गई?” प्रिंसिपल मैडम की बात से रीना की तन्द्रा भंग हुई।
देखो तो स्वच्छता विभाग के बड़े अफसर और बीडीओ साहेब आये हैं हमारे स्कूल में ये मशीन लगवाने।
” अब तुम लोगों को कहीं बाहर जाने की जरूरत नही है। बस इसमे पैसे डालना है और सेनिटरी पैड तुम्हारे हाथों में। और इस्तेमाल के बाद इंसीनरेटर में बस डाल देना है ।बाहर छुपकर फेंकने की समस्या खत्म। अब खुश हो न तुम लोग’
“जी!” रीना और उसके स्कूल की सभी लड़कियां खुशी के मारे उछल पड़ी। अब उनदिनों की सारी मुसीबत खत्म!
©®*पंकज भूषण पाठक “प्रियम”