पीड़ा
जिसको मानाथा पति
वो पतित हो गया
मन हमारा तो पूरा व्यथित हो गया…
तुम जहाँ में मिले हो
हमें साथिया,
क्यो दिया यूँ दग़ा
क्या था मैने किया..
मन मेरा कामना से रहित होगया…
जो पति था मेरा वो पतित हो गया…
उसको कोई कहेगा नही
क्या किया
हर सजा तो हमारे ही
हक में दिया
कैसे कैसे रहा मन
औ कैसे जिया
आंसुओं को पिया
सबको जीवन दिया
सगरी पीर को हमने
दमित कर दिया
जो पति था हमारा पतित हो गया|
है नहीं केवल नारी पतिता बनी
पुरूष की भी तो है
आखिर दुनिया यही
जब गलत वो रहे तो
पतित भी कहो..
सब्र संकोच के हेतु चुप न रहो
अनीति अन्याय को यूँ न सहती रहो|पीड़ा जो भी हो
उसको तो कहती रहो|
फिर प्रयत्नों से थारे वो दिन आयेगा…
जब नारी पुरुष सम कहा जायेगा
डा पूनम श्रीवास्तव (वाणी)