पीड़ा
नारी नारी नारी
बेचारी बेचारी
तू अबला संग में विपदा गहे
अब तेरी पीड़ा कौन कहे
ये बात नहीं आज कल की है,
ये हर सदी हर पल की है,
कभी राम तुझे तजा करते,
जब कुटिल कान भरा करते,
क्यों अग्निपरीक्षा दी तूने,
अबला है पुष्टि की तूने,
कभी दुर्योधन मर्यादा तोड़े,
तुझ पे अश्लील व्यंग छोड़े,
और भीष्म वहां चुप रहते हैं,
समरथ हो कुछ न कहते हैं,
क्या ये नैतिकता का हनन नहीं,
औ सिंहासन का अंध अनुसरण नहीं,
और फिर बुद्ध, जिन व तुलसी,
तपे ये, आत्मा तेरी सुलगी,
जब तू इनकी वामांगी थी,
प्रेरणा और अर्द्धांगी थी,
और फिर तू जब इन पर निर्भर थी,
तो यह त्याग नीति कहो बर्बर थी,
तुझे किसको सहारे छोड़ गये,
सब सुख हर दुख को मोड़ गये,
क्यों ऐसा ही सुना सदा,
उसका स्वामी है छोड़ गया,
अब तुम अबला का भेष तजो,
और आपो दीपो स्वयं बनो,
पराधीन नहीं लड़ सकता है,
वो सदा सहारा तकता है,
पुष्प ठाकुर