पीड़ा किसको चाहिए कौन लखे दुख द्वेष ।
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
पीड़ा किसको चाहिए कौन लखे दुख द्वेष ।
मन शरीर और आत्मा रहे खिन्न अतिरेक ।
तूने जो सुख भोगने तो ले ये मंत्र सुजान ।
करना मत किसी जीव को जीवन में हैरान ।
सज्जन ज्ञानी संत का मूल मंत्र है समदृष्ट ।
देख पराई चूपड़ी कभी न विचरिए कष्ट
प्रकृति है तो ही पुरुष है दोनों हैं तो ये सृष्टि है
व्यवधान क्यूँ हो ध्यान में रहें सब एकांत में ।
मांग – मांग मन न भरे कह गए ज्ञानी भक्त
दे ने से धन न घटे, घाट घाट हों अस्त ।
व्यस्त रहें संसार में वैज्ञानिक और चिकित्सक ।
पर चिंता के कार्य हैं साधक सिद्ध और विचारक ।